Monday, December 3, 2012

टूटती देह की बंदिशें
सर्वदमन पाठक

भारतीय समाज बहुत तेजी से बदल रहा है। उतनी ही तेजी से समाज के  मूल्य भी बदल रहे हैैं। हर क्षेत्र में महिलाएं अपनी कामयाबी का परचम लहरा रही हैैं और पुरुषों को क्षमताओं के मामले में चुनौती दे रही हैैं। शिक्षा, नौकरी तथा अन्य व्यवसाय में उनकी बढ़ती मौजूदगी इसका प्रमाण है। उन क्षेत्रों में भी, जिन पर कभी पुरुषों का एकाधिकार था, अब महिलाओं का खासा दखल देखा जा सकता है। इसका स्वाभाविक परिणाम यह है कि महिलाओं और पुरुषों के बीच की दूरियां नजदीकियों में बदल रही हैैं। हर महानगर तथा महानगर में तब्दील हो रहे शहरों में शिक्षण संस्थाओं तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में अध्ययन, नौकरी या व्यवसाय करने वाले युवक-युवतियों तथा स्त्री-पुरुषों के लिए समाज एवं परिवार की नैतिकता से जुड़ी बंदिशों तथा परंपराओं का बंधन बेमानी हो चला है। यदि और स्पष्ट तरीके से कहा जाए तो वर्तमान दौर में एक नई संस्कृति करवट ले रही है जहां देह की वर्जनाएं टूट रही हैैं। स्त्री पुरुषों के बीच बढ़ती नजदीकियां सिर्फ  दैहिक हों, यह जरूरी नहीं है। उनमें भावनात्मक प्रगाढ़ता भी हो सकती है लेकिन अंतत: देह का आकर्षण ही उनके भावनात्मक लगाव की अभिव्यक्ति के लिए उत्प्रेरक का काम करता है। पुरुषों एवं स्त्रियों के बीच यौन आकर्षण एक स्वाभाविक सी बात है और जब उन्हें अपने घर-परिवार से दूर स्वछंद वातावरण मिल जाए तो यह यौन आकर्षण सीमाओं का अतिक्रमण करने को बेताब उठता है और फिर भावनाओं का प्रवाह एवं दैहिक जरूरतों को पूरा करने की मजबूरी उनके दैहिक संबंधों का बहाना बन जाती है। न केवल दिल्ली, मुंबई, कलकत्ता जैसे महानगर बल्कि भोपाल जैसे बड़े शहरों में भी होटलों, पार्कों एवं एकांत स्थलों में अक्सर देखा जाने वाला एक दूसरे में समाने की कोशिश करता आलिंगनबद्ध जोडों का हुजूम इसी हकीकत को दर्शाता है। वर्जनाहीन संस्कृति का यह परिदृश्य समाज के ठेकेदारों के लिए चिंता का विषय हो सकता है लेकिन यह आज की सामाजिक हकीकत है, इससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता।
सवाल यह है कि आखिर इस नई संस्कृति के कारण क्या हैैं और क्या इसे विकृति कहना उचित है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कई बार महिलाओं को अपनी महत्वाकांक्षाओं की कीमत चुकानी पड़ती है। विशेषत: फिल्मों तथा टीवी तथा फैशन शो जैसे शो बिजनेस में काम करने वाली महिलाओं को तो कई बार सफलता की कीमत लोगों को दैहिक दृष्टि से उपकृत करके चुकानी पड़ती है। लेकिन साथ ही महिलाओं में भी यह प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है कि यदि देह की कीमत पर भी उन्हें सफलता मिले तो उन्हें इसमें कोई आपत्ति नहीं होती। स्वेच्छा से देह का सौदा कर सफलता का शार्टकट अपनाना निश्चित ही एक विकृति कही जा सकती है।
आम तौर पर देखा गया है कि सहकर्मियों तथा सहपाठियों में एक दूसरे के साथ ज्यादा संबंध गुजारने के कारण अंतरंग संबंध विकसित हो जाते हैैं और वे कालांतर में यौन संबंध में तब्दील हो जाते हैैं। महानगरों में तो लिव इन कल्चर भी तेजी से पनप रहा है जिसमें बिना वैवाहिक संबंध के बिना ही पुरुष-स्त्री साथ में रहते हैैं और उनमें सेक्स के संबंध भी होते हैैं। आजकल तो इसे कानूनी मान्यता भी मिल गई है। कई देशों में यह चलन पहले से ही चल रहा है लेकिन हमारे देश में भी अब समाज इसे स्वीकारने लगा है। यह एक तरह का सेक्स का नशा है जिसमें विवाह तथा उससे जुड़ी हुई जिम्मेदारियों से मुक्त रहकर व्यक्ति डूब सकता है।
हो सकता है कि वर्तमान दौर में परिजनों तथा अपने जन्म स्थल से दूर रहने के कारण इन तरीकों से युवक युवतियों की दैहिक तथा भावनात्मक जरूरतें पूरी करने में ये तरीके मददगार सिद्ध होते हों लेकिन सवाल यही है कि क्या इससे विवाह पर आधारित हमारे सामाजिक ढांचा क्षतिग्र्रस्त नहीं होगा और हम धीरे धीरे वर्जनाहीन समाज में तब्दील तो नहीं हो जाएंगे। यदि ऐसा हुआ तो यह भारतीय संस्कृति के क्षरण का ही संकेत होगा।
बॉक्स में
वर्जन
जरूरी नहीं है
माना कि समाज के अपने नियम हैं लेकिन सारे नियमों को स्वीकार करना किसी के लिए भी जरूरी नहीं है। फिर जिंदगी हमारी है तो इसे हमें अपनी मर्जी से जीने का पूरा अधिकार मिलना ही चाहिए।
तान्या सबरवाल
बी कॉम, प्रथम वर्ष
एक्सीलेंस कॉलेज

- सारी जिंदगी रहता है
वर्जनाओं को तोड़कर आगे बढऩे वाले युवाओं को कुछ देर का सुख चाहे मिल जाए लेकिन इसके बदले भविष्य में जो भयावह परिणाम सामने आते हैं, उनका असर सारी जिंदगी रहता है। हवा में उडऩे वाले युवाओं को अपनी सोच बदलकर सामाजिक दायरे में रहना सीखना चाहिए।
विजय प्रताप सिंह
बीई तृतीय वर्ष, मैनिट

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बदलाव अस्थायी है
समाज में लगातार बदलाव हो रहे हैं। इन बदलावों का परिणाम ही है कि आज के युवाओं की सोच बदली है। वे पुराने नियमों का पालन करने में विश्वास नहीं करते। जो नयापन उनकी सोच में देखने को मिल रहा है, वह पानी में उठती तरंगों की तरह है जो कुछ समय के लिए उठती हैं और फिर शांत हो जाती हैं। इसी तरह ये बदलाव भी अस्थायी है।
समाजशास्त्री
ज्ञानेंद्र गौतम
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पश्चिमी देशों की नकल है
हमारे देश में पश्चिमी सभ्यता की नकल करने वाले युवाओं की संख्या अधिक है। वे वहां की हर बात की नकल करना चाहते हैं। पश्चिमी देशों की देखादेखी शादी से पहले सेक्स को वे बुरा नहीं मानते। आज के युवाओं को हर चीज जल्दी पा लेने की आदत हो गई है। वे चाहते हैं कि जो भी चीज वो चाहते हैं, वह फौरन उन्हें मिल जाए इसीलिए नई-नई गर्लफ्रेंड बनाने की इच्छा या सेक्स की चाहत भी वे फौरन पूरा कर लेने में विश्वास रखते हैं। इन आदतों की वजह से ही रिश्ते जितनी जल्दी बनते हैं उतनी ही जल्दी खत्म भी हो जाते हैं।
मनोवैज्ञानिक चिकित्सक
डॉ. काकोली राय

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