Tuesday, December 18, 2012


तोमर का ताज, नए दौर का आगाज

सर्वदमन पाठक

मध्यप्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद पर नरेंद्र सिंह तोमर की ताजपोशी के साथ ही भाजपा की प्रादेशिक राजनीति में एक बड़ी तब्दीली की इबारत बखूबी लिख दी गई। यह शायद भाजपा में ही संभव था कि इतनी महत्वपूर्ण घटना को बिना किसी विरोध अवरोध के अंजाम दे दिया गया हालांकि इसकी आकस्मिकता से सब चकित जरूर रह गए। प्रदेश की सियासत की नाड़ी पर हाथ रखे रहने का दावा करने वाले पत्रकारों के लिए इसे एक नाकामी ही माना जाएगा कि दो दिन पहले तक उन्हें भी इसकी भनक तक नहीं लगी। इतना ही नहीं, पूर्व पत्रकार और भाजपा के निवर्तमान अध्यक्ष प्रभात झा के लिये भी यह बदलाव किसी अप्रत्याशित घटना जैसा ही आश्चर्यजनक रहा। यदि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व कुछ ठान ले तो फिर इसके विरोध की गुंजायश काफी कम होती है इसलिए इस मामले में भी विरोध का कोई सवाल ही नहीं था लेकिन प्रभात झा ने तोमर की ताजपोशी के समय जिस तरह से अपनी वेदना जताई, वह भी चुनाव के तौर तरीके के प्रति उनके विरोध प्रदर्शन का ही एक तरीका था। उन्होंने अपने संबोधन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह पर जिस तरह से निशाना साधा, उससे उनकी बेचैनी का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता था। उन्होंने इस चुनाव में बरती गई गोपनीयता की तुलना पोखरन परमाणु विस्फोट से कर अपनी नाखुशी का इजहार कर दिया हालांकि उन्होंने नवनिर्वाचित अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर की तारीफ कर प्रगट रूप से अपनी भावनाओं में संतुलन लाने का प्रयास भी किया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने यह दर्शाने की कोशिश की कि यह संगठन का फैसला था और इसमें उनकी कोई भूमिका नहीं थी लेकिन यह वास्तविकता अब सबके सामने है कि शिवराज सिंह ने एक निश्चित रणनीति के तहत खुद ही इस परिवर्तन की पटकथा लिखी थी। बहरहाल इसके परिणामस्वरूप अब प्रदेश भाजपा को तोमर के रूप में एक सक्षम तथा चतुर राजनीतिक व्यूहरचनाकार नेतृत्व मिला है जिसमें अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर वक्त के तकाजों को समझते हुए रणनीति बनाने और उसे अमलीजामा पहनाने की क्षमता है। मुख्यमंत्री के साथ उनके रिश्ते पारस्परिक भरोसे के कितने ऊंचे पायदान पर हैैं, यह उनके चुनाव से ही स्पष्ट हो जाता है। अत: उम्मीद की जा सकती है कि चुनावी तैयारी के इस अहम दौर में सत्ता एवं संगठन के इन दोनों शीर्ष नेतृत्वों के बीच भरपूर तालमेल बना रहेगा। यह पद ग्र्रहण करने के पहले तक तोमर भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव थे। इस नाते उनकी भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी सहित तमाम राष्ट्रीय नेताओं से जो फाइन ट्यूनिंग रही है, वह प्रदेश के विभिन्न कार्यक्रमों और नीतियों के साथ  केंद्रीय नेतृत्व के सहयोग और समन्वय में अवश्य ही मददगार होगी।
इसमें कोई शक नहीं है कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के रूप में प्रभात झा का कार्यकाल भी उपलब्धियों से भरा रहा है। नगरीय निकायों सहित कई चुनावों में भाजपा को विजयश्री दिलाने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है लेकिन उनका पार्टी के प्रति उनका ज्यादा बड़ा योगदान यह रहा है कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ काफी मुखर रहे हैं। संगठन की विभिन्न बैठकों में तो उन्होंने सरकार को भी भ्रष्टाचार से सचेत करने की कोशिश की है जो संभवत: भाजपा के एक वर्ग को रास नहीं आई। इसके अलावा राजनीति में सबको खुश रखने वाली 'साफ्टनेसÓ की जरूरत होती है लेकिन इसके विपरीत विभिन्न मुद्दों पर 'एरोगेंसÓ की हद तक उनकी आग्र्रही प्रवृत्ति भी लोगों को रास नहीं आई जिसका खमियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। यदि यह कहा जाए कि स्वाभिमानी पत्रकार का उनका तेवर उनकी सियासत की राह की बाधा बन गया तो गलत नहीं होगा।
कल्पना के कनकौवे उड़ाने में माहिर कुछ राजनीतिक विश्लेषक यह संदेह जता रहे हैैं कि मुख्यमंत्री के इशारे पर संगठन में शीर्ष स्तर पर फेरबदल का यह सिलसिला कहीं प्रदेश को गुजरात की तर्ज पर तो नहीं ले जाएगा जहां नरेंद्र मोदी के सामने भाजपा संगठन की कोई अहमियत ही नहीं रह गई है लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत है। शिवराज सिंह काफी 'डाउन टू अर्थÓ हैैं और वे सर्वसमावेशी नेतृत्व में भरोसा रखते हैैं। उनकी हर यात्रा तथा कार्यक्रम में संगठन को पर्याप्त महत्व दिया जाता है। उन्होंने अपने चारों ओर पाखंड की कोई दीवार नहीं बनाई है। यही कारण है कि वे दलीय कार्यकर्ताओं के लिए सहज रूप से सुलभ हैैं। वैसे भी काडर आधारित संगठन होने के नाते भाजपा में व्यष्टि को समष्टि की इकाई के रूप में ही महत्व दिया जाता है। इसलिए राजनीतिक विश्लेषकों की उक्त धारणा का कोई आधार नहीं है। बहरहाल इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि आगामी विधानसभा चुनाव में प्रदेश की सत्ता एवं संगठन के नेतृत्व की मिली जुली रणनीति काफी महत्वपूर्ण रोल अदा करने वाली है जिसकी पृष्ठभूमि इस चुनाव के जरिये तैयार कर ली गई है।

No comments:

Post a Comment