कब थमेगी यह दरिंदगी?
-सर्वदमन पाठक
दिल्ली में पेरा मेडिकल की छात्रा के साथ बस में हुई गैैंग रेप की घटना पर देश गुस्से से उबल रहा है। इस पैशाचिकता की हद तक भयावह बलात्कार केखिलाफ दिल्ली से लेकर देश के कोने कोने में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला चल रहा है। संसद ने भी इस बलात्कार की घटना पर रोष जताया है और इसके आरोपियों को फांसी की सजा की मांग की है। पीडि़त लड़की अभी भी अस्पताल में गंभीर अवस्था में है। उसके दो आपरेशन हो चुके हैैं लेकिन उसे अभी भी खतरे से बाहर नहीं कहा जा सकता। यह एक ऐसा हादसा है जो हमारी रूह को झकझोर देने के लिए काफी है। इस दुखद घटना पर सरकार एवं प्रशासन के खिलाफ लोगों की नाराजी पूरी तरह उचित ही है क्योंकि बस में दस किलोमीटर की दूरी तक हैवानियत का यह कृत्य चलता रहा और लड़की और उसका दोस्त मदद के लिए चिल्लाते रहे। इस दौरान कई पुलिस नाकों से भी वह बस गुजरी लेकिन सभी जगह पुलिस नदारद थी। इतना ही नहीं, वह बस काफी समय से अवैध रूप से चल रही थी लेकिन संभवत: पैसे की वसूली के चलते पुलिस एवं प्रशासन की जानबूझकर बरती जाने वाली लापरवाही के कारण उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और अंतत: यह बस बलात्कारियों की दरिंदगी में इस्तेमाल हो गई। यह पहला अवसर नहीं है जब हमारी राष्ट्रीय राजधानी में किसी लड़की की इज्जत को तार तार किया गया है। यदि यह कहा जाए कि आजकल दिल्ली बलात्कारियों और अपराधियों की राजधानी बन गई है तो कतई अतिशयोक्ति नहीं होगी लेकिन दिल्ली सरकार और प्रशासन इस दिल दहला देने वाली घटना के बाद ही जागी है और अपराधियों पर नकेल कसने के लिए कोशिश कर रही है। यदि पिछली घटनाओं से सबक लेकर पहले से ही सतर्कता बरतती तो मानवता को शर्मसार करने वाली यह वारदात रोकी जा सकती थी। जहां तक बलात्कारों का सवाल है, दिल्ली ही नहीं, समूचे देश में ऐसी घटनाएं आए दिन होती हैैं लेकिन संभवत: उन पर इतनी चर्चा इसलिए नहीं होती क्योंकि वे देश की राजधानी में नहीं घटतीं। आंकड़ों के हिसाब से कई राज्यों में दिल्ली से कहीं ज्यादा यौन अपराध होते हैैं। ये वे आंकड़े हैैं जो बाकायदा नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के पास दर्ज हैैं। लेकिन यह हमारी सियासी विरादरी का पाखंड ही है कि दिल्ली की घटना पर तो वे टीवी चैनलों के सामने काफी जोर शोर से इसकी निंदा करते हैैं और विरोध प्रदर्शन में काफी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैैं लेकिन उनके अपने दलों द्वारा शासित राज्यों में होने वाली बलात्कार की घटनाओं को रोकने के लिए वे कोई कारगर प्रयास नहीं करते । दरअसल हमारे सामाजिक वातावरण में जो गिरावट आ रही है, यह उसी का दुष्परिणाम है। हम स्त्री को आजकल हाड़ मांस के इंसान के बदले कमोडिटी समझने लगे हैैं और इसीलिए उसके दुख दर्द से हमारा कोई वास्ता नहीं रहता। हम उसे सिर्फ विलासिता की वस्तु मानकर उसके साथ व्यवहार करते हैैं। टीवी चैनल पर परोसा जाने वाला सांस्कृतिक प्रदूषण इसे लिए काफी हद तक जिम्मेदार है।
जहां तक इस तरह की घटनाओं की रोकथाम का सवाल है तो सिर्फ पुलिस या सरकार इसे नहीं रोक सकती। इसके लिए हमें सिविल डिफेन्स प्रणाली तथा कम्युनिटी पुलिलिंग की व्यवस्था लागू करनी होगी जो इसमें सहयोग कर सके। लेकिन सबसे बड़ी जरूरत समाज की सोच में बदलाव करने तथा परिवार मेंं स्त्री की प्रतिष्ठा को पुनस्र्थापित करने की है क्योंकि इस समस्या की जड़ वही है।
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