जनास्था जगाता जुडीशियल एक्टिविज्म
सर्वदमन पाठक
वास्तविक मायने में यह साल जुडीशियल एक्टिविज्म के नाम रहा। भ्रष्टाचार तथा स्वेच्छाचारिता में डूबी सरकार से निराश- हताश लोगों को जुडीशियल एक्टिविज्म के जरिये न्यायपालिका ने यह भरोसा दिलाया कि वह देश के लोगों की उम्मीदों को मुरझाने नहीं देगी।
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जब देश के इतिहास में सबसे बड़े भ्रष्टाचार के मामलों में समुचित न कार्रवाई न होने से देश के लोगों में सरकार के प्रति आक्रोश का ज्वार उमड़ रहा था तब उच्चतम न्यायालय ने इन मामलों में कानून और न्याय के प्रभावी अमल की कमान अपने हाथों में ली और सत्ता सुख भोग रहे मंत्रियों सहित तमाम शक्तिशाली आरोपियों को जेल का रास्ता दिखाकर लोकतंत्र के प्रति लोगों की ध्वस्त होती आस्था को पुन: स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई। न्यायपालिका ने विभिन्न चर्चित मामलों में सरकार की ढिलाई के मद्देनजर खुद पहल करते हुए समुचित अदालती तथा कानूनी कार्रवाई कर सरकार को भी आइना दिखाया। इतना ही नहीं, प्रदूषण, रैगिंग तथा आनर किलिंग जैसे सामाजिक सरोकारों से जुड़े मामलों में भी उसने कई ऐसे फैसले दिये जो भविष्य के लिए नजीर बन गए। जनांदोलनों को दबाने के लिए बलप्रयोग तथा झूठे मुकदमे लादने की कशिश पर भी न्यायपालिका ने सरकार को सवालों के कटघरे में खड़ा किया और इस तरह लोकतांत्रिक विरोध को कुचलने की सरकार की प्रवत्ति पर अंकुश लगाने की पहल की। न्यायपालिका ने धर्म पर आधारित आरक्षण के जरिये चुनावों की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अनैतिक तरीके से प्रभावित करने के सरकारों को इरादों को भी अपने फैसले से निष्प्रभावी कर दिया।
इस साल लोगों में भरोसा जगाने वाले जो बड़े फैसले अदालतों ने किये हैैं, वे इस बात के परिचायक हैैं कि अब न्यायपालिका देश को चिंतित करने वाले मामलों में सरकार के पूर्वाग्र्रहपूर्ण रुख को देखते हुए इनकी न्याय प्रक्रिया को अंजाम तक पहुंचाने के लिए खुद पहल कर रही है। यदि यह कहा जाए कि सरकार पर न्यायपालिका का अविश्वास इस कदर बढ़ गया है कि न्यायपालिका को उन कार्यों को भी हाथ में लेना पड़ रहा है जो मूलत: सरकार की जिम्मेदारियों से जुड़े हैैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस साल कई मामलों में न्यायपालिका ने जुडीशियल एक्टिविज्म का परिचय देते हुए असाधारण परिस्थितियों के अनुसार असाधारण कार्यवाही की और लोगों को भरोसा दिलाया कि सरकार की अनिच्छा के बावजूद लोगों की न्याय की आस को पूरा किया जाएगा। इन महत्वपूर्ण मामलों का ब्योरा इस प्रकार है:
टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाला: यह देश के इतिहास का संभवत: यह सबसे बड़ा घोटाला था जिसमें कैग की रिपोर्ट के अनुसार देश को लगभग 1 लाख 75 हजार करोड़ का घाटा होने का अनुमान लगाया गया था। इसके बावजूद केंद्र सरकार की इच्छाशक्ति के अभाव मेेंकछुआ चाल से इसकी जांच का काम
चलता रहा। इससे लोगों में उपजी गहन निराशा की भावना को देखते हुए
उच्चतम न्यायालय ने इस अभूतपूर्व महाघोटाले में फरवरी में जो फैसला दिया वह अपने आप में अनूठा था। शीर्ष अदालत ने केंद्रीय मंत्री के पद पर बैठे शक्तिशाली नेताओं को जेल के सींखचों के पीछे भिजवाने के साथ ही उन्हें अपील के अधिकार से भी वंचित कर दिया। उच्चतम न्यायालय ने सभी अदालतों को निर्देश दिया कि इस मामले से जुड़े मुकदमे न तो सुने जाएं और न ही इन पर कोई आदेश पारित किया जाए।
कसाब को फांसी: देश को दहला देने वाले 26-11 के मुंबई हमले के दोषी पाकिस्तानी नागरिक कसाब को सर्वोच्च न्यायालय ने फांसी की सजा सुना कर एक नजीर पेश की। स्वातंत्र्योत्तर भारत के न्यायिक इतिहास में यह पहला ही अवसर था कि किसी विदेशी को सुप्रीम कोर्ट के आदेश से फांसी पर लटका दिया गया, वह भी इतने गोपनीय तरीके से कि जिसकी भनक सत्ता प्रतिष्ठान पर काबिज शीर्ष हस्तियों तक को नहीं लगी।
कैसा देशद्रोह: कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी पर सिर्फ कार्टूनों की वजह से देशद्रोह का मुकदमा दायर करने वाली पुलिस को अदालत ने काफी कड़ी फटकार लगाई। सारे देश का ध्यान खींचने वाले इस मामले में बंबई उच्च न्यायालय ने पुलिस को खासी फटकार लगाई और उससे सवाल किया कि आखिर क्यों असीम त्रिवेदी पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जा रहा है। पुलिस ने अदालत के तेवर देखकर अंतत: असीम पर से देश द्रोह का मुकदमा वापस ले लिया।
मुस्लिम आरक्षण रद्द किया: उच्चतम न्यायालय ने मुस्लिमों को आरक्षण संबंधी कानून रद्द कर सरकार को जबर्दस्त झटका दिया। चुनावों में मुस्लिमों का समर्थन पाने के इरादे से लाए गए साढ़े चार फीसदी मुस्लिमों को आरक्षण देने संबंधी प्रस्ताव पर अदालत ने पूछा कि साढ़े चार फीसदी मुस्लिमों को आरक्षण देने से क्या इस कौम का भला हो जाएगा। उसने सरकार से यह भी पूछा कि आखिर यह साढ़े चार फीसदी का आंकड़ा उसने कैसे निकाला। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरप्रदेश सरकार के उस आदेश को भी रद्द कर दिया जिसमें प्रोन्नति में आरक्षण का प्रावधान है। मायावती सरकार द्वारा अपने वोट बैैंक को टारगेट करते हुए किए गए इस प्रावधान पर अदालत ने कहा कि जब तक यह नहीं तय हो जाता कि अन्य वर्गों का पदोन्नति में प्रतिनिधित्व कितना है, इस आरक्षण को मंजूरी नहीं दी जा सकती।
आदर्श हाउसिंग घोटाला: अदालत के कड़े रुख के कारण सीबीआई ने अदालत में इस मामले में जो आरोप पत्र पेश किया, उसके कारण महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा और इसके छींटे विलास राव देखमुख पर भी पड़े। इसमें कई वरिष्ठ सैन्याधिकारियों पर भी कार्रवाई हुई जो अपने आप में एक मिसाल है।
सहारा पर नकेल: सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक मामलों से जुड़े भी कुछ प्रकरणों में आम आदमी के हितों के मद्देनजर महत्वपूर्ण फैसले दिये मसलन सहारा समूह द्वारा करोड़ों निवेशकों से वसूले गए 24000 करोड़ रुपए वापस करने का महत्वपूर्ण फैसला देकर अदालत ने छोटे तथा मंझौले निवेशकों के हितों की रक्षा का भरोसा दिलाया। उधर अदालत ने सरकार को वोडाफोन कंपनी के 1100 करोड़ रुपए वापस करने का आदेश दिया। सरकार ने यह राशि वोडाफोन द्वारा विदेश में किये सौदों पर कर लगाकर वसूली थी।
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