Monday, December 3, 2012

ये पब्लिक है, सब जानती है
सर्वदमन पाठक

 हालांकि अभी मध्यप्रदेश विधानसभा के  चुनाव लगभग एक साल दूर हैैं लेकिन लगता है कि प्रदेश में चुनावी मौसम अभी से दस्तक देने लगा है। सियासी दांवपेंचों में आई तेजी इसी वास्तविकता की ओर संकेत कर रही है। चाहे विपक्ष हो या फिर सत्तारूढ़ दल दोनों ही चुनावी रंग में रंगते नजर आ रहे हैैं। मसलन प्रमुख विपक्षी दल कांग्र्रेस ने पिछले चुनाव के बाद पहली बार किसान सम्मेलनों के बहाने विपक्ष के रूप में अपनी सक्रियता का अहसास कराया है। संदेश स्पष्ट है कि कांग्र्रेस किसानों के असंतोष को भुनाने के लिए यह कदम उठाने जा रही है। उधर सरकार को भी यह अहसास है कि किसानों के भीतर घुमड़ रहे असंतोष के चलते चुनावी जंग में उसे काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है इसलिए वह भी अपने ढंग से इससे निपटने की रणनीति बनाने में जुट गई है। यह सर्वविदित है कि राज्य में इस समय बिजली और सड़क की समस्या से लोगों विशेषत: किसानों का जीना मुहाल है। बिजली की घोषित-अघोषित कटौती के कारण न केवल खेती किसानी, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी में भी किसान बिजली कटौती के झटकों से बेजार हैं। चूंकि खेती पर ही उनकी समूची अर्थव्यवस्था टिकी है, और बिजली कटौती का सर्वाधिक प्रभाव खेती पर पड़ा है, इसलिए उनकी पूरी अर्थव्यवस्था ही गड़बड़ा गई है। इससे सरकार के प्रति उनकी नाराजगी स्वाभाविक ही है। राज्य मंत्रिमंडल की अनौपचारिक बैठक में मंत्रियों द्वारा इन समस्याओं पर दर्शाई गई बेचैनी इसी का प्रमाण है। भले ही सरकार के पास इसका कोई फौरी हल न हो लेकिन उसने इन मुद्दों पर खुद को निर्दोष बताने तथा पूरा का पूरा दोष केंद्र सरकार के सिर मढऩे की पूरी-पूरी तैयारी कर ली है। इस सिलसिले में राज्य मंत्रिमंडल की अनौपचारिक बैठक में तय किया गया है कि पूरा मंत्रिमंडल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात कर प्रदेश के साथ किये जा रहे भेदभाव की शिकायत करेगा। सोची समझी रणनीति के तहत राज्य सरकार प्रधानमंत्री से कहेगी कि केंद्र की भेदभावपूर्ण नीतियों के चलते कोयले की अपर्याप्त आपूर्ति के कारण राज्य को पर्याप्त बिजली उपलब्ध नहीं हो पा रही है। इसके कारण किसानों को राज्य समुचित मात्रा में बिजली उपलब्ध कराने में खुद को असमर्थ पा रहा है। इसी प्रकार राज्य में सड़कों की बदहाली का ठीकरा भी केंद्र के सिर फोडऩे की तैयारी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने जिस तरह से कैबिनेट की अनौपचारिक बैठक में राष्ट्रीय राजमार्गों की बदहाली के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया है, उससे यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि प्रधानमंत्री से मुलाकात में राष्ट्रीय राजमार्गों की बदहाली को भी पुरजोर तरीके से उठाया जाएगा। इस कवायद का उद्देश्य यही है कि राज्य की जनता को यह समझाने की कोशिश की जाए कि राज्य में सड़कों की बदहाली तथा बिजली संकट के लिए केंद्र सरकार ही जिम्मेदार है। वैसे अपने ऊपर मंडराने वाले किसी भी संकट के लिए केंद्र सरकार को उत्तरदायी ठहराना राज्य सरकार का पुराना फंडा है। इसका प्रमाण यही है कि खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह बिजली संयंत्रों को अपर्याप्त कोयला आपूर्ति के खिलाफ धरने पर बैठ चुके हैैं।
लेकिन यक्ष प्रश्न यही है कि राज्य सरकार की इस मासूमियत पर जनता कितना भरोसा करेगी। बहरहाल सरकार एवं विपक्ष को यह भलीभांति समझ लेना चाहिए कि अब जनता उनकी चालबाजियों से वाकिफ हो चुकी है और अब लोगों की समस्याओं के हल के ईमानदार प्रयास ही उन्हें संतुष्ट कर सकेंगे, महज शिगूफेबाजी नहीं।

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