मध्यप्रदेश के स्थापना दिवस पर आयोजित समारोह में मध्यप्रदेश के सर्वांगीण विकास के लिए राजनीतिक एकजुटता का प्रदर्शन एक श्लाघनीय पहल है। यह राजनीतिक एकजुटता की पहल मुख्यमंत्री ने की और विपक्षी दलों ने इस पहल पर रचनात्मक रिस्पान्स प्रदर्शित किया। यह कोई अस्वाभाविक बात नहीं थी क्योंकि प्रदेश का विकास कोई राजनीतिक लाभ हानि जैसा संकीर्ण मुद्दा नहीं है, जिस पर राजनीति की जाए। यदि राजनीतिक दल समझते हैं कि उक्त कार्यक्रम में की गई यह पहल जनता के बीच उनकी छवि उजली करने के लिए कारगर हो सकती है भले ही इसे सिर्फ जुबानी जमा खर्च तक सीमित रखा जाए तो यह उनकी गलतफहमी है। उन्हें याद रखना चाहिए कि जनता उनकी गतिविधियों को लगातार मानीटर करती रहती है और इस बात की बारीकी से पड़ताल करती रहती है कौन सा दल उसका सच्चा हमदर्द है और कौन सा दल उसका हितैषी होने का पाखंड रचता है। दरअसल इस राजनीतिक एकजुटता की शुरुआत जितनी जल्दी से जल्दी हो सके, की जानी चाहिए क्योंकि राजनीतिक गुटबाजी के ही कारण राज्य को काफी नुकसान होता रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि इससे प्रदेश का विकास प्रभावित होता है। अब अवसर आ गया है कि इसकी प्रभावी ढंग से शुरुआत की जाए। ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं जहां यह शुरुआत की जा सकती है। मसलन बिजली उत्पादन के क्षेत्र में विपक्ष एवं सरकार को एकजुट होना चाहिए ताकि इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए जा सकें। यह कोई राजनीतिक गुटबाजी का विषय नहीं है लेकिन इस पर राजनीतिक गुटबाजी लगातार हावी रहती है। दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली पिछली कांग्रेस सरकार बिजली संकट के कारण ही पराजित हुई थी और वर्तमान सरकार की साख भी बिजली की अपर्याप्त उपलब्धता के कारण दांव पर लगी है। अब राज्य सरकार इसके लिए कांग्रेस नीत केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही है जबकि कांग्रेस शिवराज सिंह सरकार पर इसके लिए दोषारोपण कर रही है। यदि केंद्र और राज्य में सत्तारूढ़ दल इस मुद्दे पर सहयोग करते हुए इसे हल करने की कोशिश करें तो शायद यह रणनीति ज्यादा कारगर होगी। राज्य में औद्योगिक विकास में भी यदि कांग्रेस एवं भाजपा के बीच एकजुटता हो तो राज्य सरकार उद्योगों के ब्लू प्रिंट तैयार करने एवं उन्हें मूर्त रूप देेने में तेजी ला सकती है जबकि केंद्र सरकार की ओर से भी उसे बिना किसी अवरोध के हरी झंडी दी जा सकती है। इस सत्ता विपक्ष सहयोग का सबसे बड़ा फायदा भ्रष्टïाचार उन्मूलन में हो सकता है। यदि सत्ता एवं विपक्ष यह ठान लेंं कि वे भ्रष्टï अफसरों और भ्रष्टï राजनीतिक नेताओं को संरक्षण नहीं देंगे तो फिर किसी की क्या मजाल कि वह प्रदेश की जनता की खून पसीने की कमाई का पैसा सार्वजनिक कल्याण के बदले अपने ऐशो आराम में खर्च कर सके। लेकिन इन सब कदमों के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत है। सवाल यही है कि राजनीतिक दल राज्य के जनता के हित में यह इच्छाशक्ति दिखा पाएंगे।
-सर्वदमन पाठक
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