Thursday, November 5, 2009

सियासी मोहरा नहीं है किसान

यह किसानों का दुर्भाग्य ही है कि उनको वोट बंैक के रूप में इस्तेमाल करने वाली सरकारें सत्ता में आते ही उन्हें भूल जाती हैं। आम तौर पर प्रकृति के भरोसे रहने वाले किसानों को वैसे ही कृषि कार्य के लिए काफी मुसीबतों से गुजरना होता है, फिर सरकारों की बेरुखी से तो उनकी मुुश्किलें दुगुनी हो जाती हैं। न केवल मध्यप्रदेश बल्कि देश के कई अन्य प्रदेशों में भी इस वर्ष कई स्थानों पर बारिश औसत से कम हुई है अत: किसानों को बोहनी में ही काफी परेशानियों से गुजरना पड़ा है। इसके बाद फिर उनके सामने बीज का संकट उपस्थित हो गया। जैसे तैसे किसानों ने बुआई की तो अब खाद का संकट उनके सामने है। हालत यह है कि किसानों को समुचित मात्रा में खाद उपलब्ध नहीं हो पा रही है। इतना ही नहीं, उसे जो खाद नसीब हो रही है, वह भी नकली या असली, इस बात का कोई भरोसा नहीं है। दरअसल नकली खाद का एक पूरा रैकेट काम कर रहा है। इसके कई पक्ष हैं मसलन खाद उत्पादक अधिक से अधिक मुुनाफा कमाने के लिए नकली खाद का निर्माण करते हैं और उन्हें सरकारी अफसरों का पूरा पूरा संरक्षण प्राप्त होता है। नकली खाद उत्पादन का गोरखधंधा इसलिए बेरोकटोक चलता रहता है क्योंकि इसे सत्ता में बैठे नेताओं का भी संरक्षण होता है। इस समय प्रदेश में किसानों का सबसे बड़ा संकट यही है कि उन्हें पर्याप्त मात्रा में खाद उपलब्ध नहीं है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि राज्य सरकार ने अपनी जरूरतों का ठीक से आकलन नहीं किया और इस वजह से केंद्र से उसे समुचित मात्रा में खाद नहीं मिल पाई। लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है। केंद्र एव राज्यों के बीच एक गर्हित राजनीतिक खेल खेला जा रहा है, जिसमें किसान मोहरा बने हुए हैं। जहां केंद्र इस खाद संकट का दोष राज्यों पर मढऩे की कोशिश कर रहा है, वहीं राज्य सरकारें इसके लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही हैं। किसानों की पूरी अर्थव्यवस्था कृषि पर टिकी होती है अत: होना तो यह चाहिए कि किसानों को उनके कृषि कार्य के लिए हरसंभव सुविधा एवं साधन मुहैया कराये जाएं और इसमें कोई राजनीति आड़े न आए लेकिन हमारे राजनीतिक दल उनके हितों की कीमत पर भी अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने से बाज नहीं आते। सरकार एवं प्रशासन को इस मामले में सतर्कता बरतनी चाहिए कि किसानों को उनके कृषि कार्य के लिए हरसंभव सहूलियतें मिलें। इसके लिए पहले से योजना तैयार की जानी चाहिए जिससे गफलत न हो। किसानों को यदि समय पर एवं समुचित मात्रा में बिजली, बीज एवं खाद न मिले तो इसकी जिम्मेदारी तय होना चाहिए। इसके लिए जो भी प्रशासनिक अधिकारी जिम्मेदार हों, उन पर कार्रवाई की जानी चाहिए। इस संबंध में कोई भी बहानेबाजी की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। यदि किसानों को जागरूकता का परिचय देते हुए एकजुट होकर उनके साथ हो रहे अन्याय का प्रतिरोध करना चाहिए। यदि किसान जागरूक हो गए तो कोई भी सरकार उनके हितों की उपेक्षा नहीं कर सकेगी।
-सर्वदमन पाठक

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