Tuesday, November 17, 2009

सेहत के सुहाने सपने और कड़वा सच

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का यह जुमला काफी चर्चित रहा है कि वे सपनों के सौदागर हैं। स्वाभाविक है कि राज्य सरकार अपने नेता की इस भूमिका को अपने कार्यों से लगातार पुख्ता करने की कोशिश करती रहती है। राज्य सरकार की एक नई घोषणा इसी हकीकत का अहसास कराती है। राज्य सरकार की इस घोषणा के अनुसार राज्य में बारह नए मेडिकल कालेज खोले जाएंगे। इस घोषणा से लोगों को यह सपना परोसने की कोशिश की गई है कि राज्य सरकार उनकी जिंदगी और सेहत की सुरक्षा को लेकर काफी गंभीर है और ताजा कदम इसी दिशा में है। इन मेडिकल कालेजों से राज्य को डाक्टरों की कमी से निजात पाने में मदद मिलेगी, यह कोई ऐसी बात नहीं है जिसे समझने के लिए लोगों को अपने माथे पर जोर देना पड़े लेकिन इसके साथ ही यह भी सोचना जरूरी है कि पहले से कार्यरत मेडिकल कालेजों की क्या हालत है और उनसे पास होने वाले डाक्टर किन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं। राज्य सरकार के लिए इससे ज्यादा शर्मनाक बात क्या होगी कि देश में जिन सरकारी मेडिकल कालेजों की मान्यता मेडिकल कौंसिल आफ इंडिया द्वारा स्थगित कर दी गई है उनमें अधिकांश कालेज मध्यप्रदेश के ही हैं। दिलचस्प बात यह है कि राज्य सरकार का चिकित्सा शिक्षा विभाग इस मामले को लेकर कतई चिंतित नहीं है कि इन कालेजों से निकलने वाले डाक्टरों का क्या भविष्य होगा। यह कोई रहस्य नहीं है कि पिछले साल सीबीएसई की पीजी परीक्षा के जो फार्म आए थे, उसमें इन कालेजों का कोड शामिल नहीं था तब केंद्र की काफी मिन्नत के बाद इन कालेजों से उत्तीर्ण डाक्टरों को परीक्षा में शामिल होने की अनुमति दी गई थी। इस वर्ष भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। एमसीआई अभी भी इन मेडिकल कालेजों में टीचिंग स्टाफ और अन्य सुविधाओं से संतुष्टï नहीं है और इस बात की कोई संभावना फिलहाल नजर नहीं आती कि इस बार भी उनके कालेज का कोड फार्म में शामिल होगा। इस बार भी वही कुछ होगा जो पिछले साल हुआ था लेकिन राज्य के चिकित्सा शिक्षा विभाग की नींद अभी भी टूटी नहीं है। यदि एमसीआई के रुख में कोई परिवर्तन नहीं आया तो इन कालेजों से उत्तीर्ण होने वाले डाक्टरों को राज्य के सरकारी चिकित्सालयों एवं अन्य राज्यों के चिकित्सालयों में नियुक्ति नहीं मिल सकेगी। राज्य सरकार अपने वेतन ढांचे के कारण राज्य के डाक्टरों में सरकारी चिकित्सालयों के प्रति भरोसा नहीं जगा पाई है जिसके परिणामस्वरूप नए डाक्टर तक सरकारी अस्पतालों की अपेक्षा प्रायवेट चिकित्सालयों में अपनी सेवाएं देना ज्यादा पसंद करते हैं। इसी वजह से सरकारी चिकित्सा प्रणाली अपंग सी पड़ी हुई है। फिर इस बात की क्या गारंटी है कि नए मेडिकल कालेजों से उत्तीर्ण होने वाले डाक्टर सरकारी चिकित्सालयों विशेषत: ग्रामीण चिकित्सालयों में अपनी सेवाएं देंगे। यदि डाक्टरी पेशे में आने वाले नवयुवकों में जनसेवा की भावना नहीं जगाई गई तो पब्लिक प्रायवेट पार्टनरशिप के तहत खोले जाने वाले मेडिकल कालेज भी प्रायवेट अस्पतालों में पूंजीपतियों के लिए तैनात रहने वाले डाक्टरों की नई फौज खड़ी कर दें तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। अत: राज्य सरकार को चिकित्सा शिक्षा के विस्तार के साथ साथ ऐसे चिकित्सा ढांचे को भी तैयार करना चाहिए जो गरीबों के कल्याण की भावना से प्रेरित हो और ग्रामीण एवं शहरी गरीबों के जीवन एवं सेहत की सुरक्षा व संवद्र्धन के लिए सरकारी चिकित्सालयों में अपनी सेवाएं दे और स्वस्थ प्रदेश के निर्माण में अपनी सार्थक भूमिका निभाए।



-सर्वदमन पाठक

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