Tuesday, November 3, 2009

पुलिस फिर कटघरे में

राज्य के लोगों को एक और राज्य की बसों से सफर की सुविधा नहीं मिलेगी। दरअसल अब महाराष्ट्र सरकार ने भी मध्यप्रदेश में अपनी बसें चलाने से इंकार कर दिया है। महाराष्टï्र ऐसा पहला राज्य नहीं है जिसने मध्यप्रदेश में अपनी बसें ले जाने से इंकार किया है। इसके पूर्व गुजरात तथा उप्र की बसों की भी म.प्र. से आवाजाही बंद हो चुकी है। महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम ने इस कदम को उठाने के लिए जो दलील दी है, वह राज्य के लिए काफी अफसोसजनक है। उसने कहा है कि मध्यप्रदेश पुलिस द्वारा परेशान किये जाने के कारण उसे अपनी बसें बंद करनी पड़ रही हैं। महाराष्टï्र परिवहन निगम का आरोप है कि प्रायवेट आपरेटरों के इशारे पर म.प्र. पुलिस यह कार्रवाई कर रही है। यह ऐसा आरोप है जो मध्यप्रदेश पुलिस के चरित्र को बेनकाब करता है। आश्चर्यजनक तो यह है कि प्रशासन ऐसे मामलों में कमोवेश चुप्पी साधे रहता है। राज्य के यातायात विभाग के प्रमुख सचिव राजन कटोच ने भी ऐसा ही कुछ रुख अख्तियार करते हुए कहा है कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है। सवाल यह भी है कि जनता की असुविधा में इजाफे के इस मामले में राज्य सरकार क्या कार्रवाई करेगी। मध्यप्रदेश की जनसंख्यात्मक तस्वीर कुछ ऐसी है कि इन तीनों राज्यों के काफी बाशिंदे प्रदेश में आकर बसे हैं और विभिन्न तीज त्यौहारों पर वे अपने गृह राज्यों में रहने वाले अपने परिजनों तथा रिश्तेदारों के पास जाते रहते हैं। इन बसों के बंद होने से इन्हें परेशानी होना स्वाभाविक है। यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह राज्य के लोगों के हितों का संरक्षण करे जो कि उत्तरप्रदेश, गुजरात तथा महाराष्टï्र की परिवहन निगम की बसें मध्यप्रदेश में न चलाने के फैसले से प्रभावित हो रहे हैं। इसके लिए दो स्तरों पर कार्रवाई की जा सकती है जिसके अंतर्गत उन राज्यों की सरकारों तथा राज्य परिवहन निगमों से बात करके उन्हें इस बात का भरोसा दिलाया जाए कि राज्य की पुलिस उन्हें अनावश्यक रूप से परेशान नहीं करेगी। इससे उनकी मुख्य शिकायत दूर होने और इस समस्या का समाधान निकलनेे का मार्ग प्रशस्त होगा। लेकिन इसके साथ ही राज्य सरकार को पुलिस पर भी अंकुश लगाना चाहिए ताकि वह प्रायवेट बस आपरेटरों के हाथों में न खेले। वैसे यह कोई महाराष्टï्र परिवहन निगम की ही शिकायत नहीं है बल्कि पुलिस के चारित्रिक पतन से प्रदेश के लोग भी परेशान हैं। अपराधियों तथा अपराध पर नकेल कसने के बदले पुलिस आम तौर पर उनको संरक्षण देती और निरपराधों को परेशान करती देखी जाती है। इसके पीछे कई कारण होते हैं लेकिन इनमें सबसे बड़ा कारण यह होता है कि उनकी अपराधियों से आर्थिक साठगांठ होती है। राज्य में आजकल जो अराजकता तथा अव्यवस्था का नजारा है, उसकी वजह यही है। वक्त का तकाजा है कि प्रदेश की पुलिस के चेहरे की कालिख को दूर किया जाए और उसे चरित्रवान चेहरा दिया जाए ताकि इस तरह की शिकायतों पर विराम लग सके।
-सर्वदमन पाठक

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