राज्य में किसानों की मुसीबतें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। बेमौसम बेपनाह बारिश से किसानों के माथे पर आईं चिंता की रेखाएं मौसम सुहाना होने से कुछ कम हुईं तो अब खाद के अभाव का संकट उनके सामने खड़ा है। वैसे प्रदेश में बिजली का संकट ज्यादा गंभीर नहीं है लेकिन विद्युत वितरण कंपनी के दोषपूर्ण तौर तरीके से विभिन्न जिलों के कई गांवों में अंधेरा छाया है। इन तथ्यों के कारण किसान गुस्से में हैं और विरोध के लिए सड़कों पर उतर आए हैं। मसलन खाद की कमी से उत्तेजित किसानों ने बैतूल-इंदौर मार्ग पर चक्काजाम कर दिया और उन्हें इसके लिए लाठियां भी झेलनी पड़ीं। जबलपुर जिले में विद्युत मंडल होने के कारण किसानों को यह उम्मीद होना स्वाभाविक है कि उन्हें बिजली के मामले में मंडल की बेरुखी का शिकार नहीं होना पड़ेगा, लेकिन वे इस मामले में नाउम्मीद हुए हैं। जिले के 29 गांवों में अंधेरा पसरा हुआ है जो आमतौर पर विद्युत मंडल की बदइंतजामी का नमूना है। राज्य के अन्य हिस्सों में भी किसानों को खाद एवं बिजली की कमी का सामना करना पड़ रहा है। वैसे तो किसान देश-प्रदेश का सबसे बड़ा वोट बैंक है। इसलिए सभी राजनैतिक दल किसानों के हितों की रक्षा का राग अलापते रहते हैं लेकिन उनके हितों की कितनी चिंता उन्हें वास्तव में होती है यह उनकी दुर्दशा देखकर ही अहसास होता है। दरअसल चुनावों के वक्त किसानों से तमाम तरह के लुभावने वायदे राजनीतिक दलों द्वारा किये जाते हैं। यह सब उनसे वोट हासिल करने वाले टोटके ही होते हैं। लेकिन एक बार चुनाव जीत जाने के बाद राजनीतिक दल किसानों को भूल जाते हैं। मध्यप्रदेश में भी कमोवेश यही कुछ हो रहा है। विडंबना तो यह है कि किसानों के हितों को लेकर राज्य के दो मंत्रियों में भी मतभेद उभर आए हैं। कृषि मंत्री रामकृष्ण कुसमारिया ने कहा है कि हाल की बारिश से किसानों की फसलों को नुकसान हुआ है लेकिन गोपाल भार्गव ऐसा नहीं मानते। क्या किसानों के हितों के लिए भी पूरी सरकार एकजुट नहीं हो सकती। यदि राज्य सरकार को किसानों की तनिक भी चिंता है तो उसे तुरंत ही उनके हितों के लिए सक्रिय होना चाहिए। इस समय किसानों की सबसे बड़ी जरूरत खाद एवं बिजली ही है। सरकार को इनकी कमी दूर करने के लिए हरसंभव कदम उठाने चाहिए। यदि इस समय किसानों की जरूरत को पूरा करने के लिए शहरों की बिजली में भी कुछ कटौती करनी पड़े तो इस मामले में संकोच नहीं किया जाना चाहिए। यदि हाल की वर्षा से किसानों की फसलों को कुछ नुकसान हुआ है तो उसकी क्षतिपूर्ति भी की जानी चाहिए। अब किसानों में जागरूकता आ रही है और वह राजनीतिक दलों की शतरंज की बिसात पर मोहरा बनने के लिए तैयार नहीं हैं। यह बात सभी राजनीतिक दलों को भलीभांति समझ लेना चाहिए।
-सर्वदमन पाठक
दरअसल उस इलाके के किसान तोड़फोड़ और हंगामा करने दिल्ली तक नहीं पहुंच पाते, इसलिए बेचारे बने हुए हैं। जहां तक चुनाव की बात है, उसमें किसान हितों के मुद्दे हर राज्य में गौड़ है, भारत-पाकिस्तान-चीन, मंदिर मस्जिद, जातिवाद, क्षेत्रवाद जैसे मसले ही प्रभावी हैं। ऐसे में किसानों के मसले पर काम करने वाली सरकार तो कोई है ही नहीं, सभी किसानों का खून पीने में ही जुटे रहते हैं।
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