Tuesday, November 17, 2009

पुलिस की भूमिका पर उठे सवाल

भोपाल के प्रमुख प्रापर्टी बिल्डर जयप्रकाश सिंह एवं उनके पुत्र की मौत ने शहर में जबर्दस्त सनसनी फैला दी है। इस मामले ने कई ऐसे सवाल खड़े कर दिये हैं जिनसे आज समाज एवं आम आदमी को जूझना पड़ रहा है। मसलन यह सवाल लोगों की जुबान पर है कि क्या संपन्नता से जुड़ी प्रतिस्पर्धा मौत का कारण बन सकती है। इसके साथ ही यह बात भी लोगों को शिद्दत से महसूस होती है कि पुलिस अपराधियों के सामने भीगी बिल्ली क्यों बनी रहती है। क्या अपराधियों से साठगांठ के कारण ही वह तमाम जघन्य अपराधों पर पुलिस मूकदर्शक बनी रहती है। इस मामले में जो हकीकत बेनकाब हुई है, उससे यह सवाल उभरा है। विभिन्न अखबारों में पुलिस के हवाले से छपी खबरों पर भरोसा किया जाए तो उनके मुताबिक जयप्रकाश सिंह का कुछ दिनों पूर्व अपहरण किया गया था और उसे इंदौर में रखकर उसके साथ मारपीट की गई थी। इस मारपीट के बल पर उससे एक फार्म हाउस पर कब्जे के कागजात पर हस्ताक्षर करवा लिए गए थे। इसके साथ ही कुछ गुंडों ने भोपाल आकर उसके परिजनों को धमकाया था कि यदि उन्होंने पुलिस को इसके बारे में बताया तो उन्हें खत्म कर दिया जाएगा। इस मामले में यह बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि जयप्रकाश सिंह थोड़े ही समय में संपन्नता की सीढिय़ां चढ़ गए थे और इस प्रक्रिया में संभवत: उनकी कुछ प्रभावी लोगों से शत्रुता हो गई हो। लेकिन इस मामले में एक शराब व्यवसायी द्वारा अपने हितों को साधने के लिए जिस तरह से किराये के गुंडों का इस्तेमाल किया गया और पुलिस इस मामले में खामोश और निष्क्रिय बनी रही, उससे पुलिस की भूमिका संदेह के दायरे में आ गई है। इतना ही नहीं, उक्त शराब व्यवसायी को पकडऩे गई पुलिस उसके निवास पर पर्ची देकर बेफिक्र हो गई मानो उक्त व्यवसायी खुद को पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने जा रहा हो जबकि वह चकमा देकर पिछले रास्ते से भाग निकला। इससे यह संदेह उपजना स्वाभाविक है कि क्या पुलिस ने उसको खुद ही भागने का मौका उपलब्ध कर दिया। यह मानना काफी कठिन है कि पुलिस को इस पूरे मामले की कोई खबर नहीं रही होगी लेकिन यदि यह मान भी लिया जाए तो फिर उसकी गुप्तचर शाखा की क्षमता पर सवाल उठ खड़ा होता है। इस तथ्य के मद्देनजर इस मामले की गंभीरता और ज्यादा बढ़ जाती है कि जयप्रकाश सिंह प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा के राष्टï्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह का करीबी रिश्तेदार था और उसकी कई मंत्रियों और आईएएस अफसरों के यहां काफी गहरी पैठ थी। फिर भी वह अपहृत हुआ, जबर्दस्त मारपीट का शिकार हुआ, और अंतत: खुद खुदकुशी करने के मजबूर हो गया लेकिन इसके बावजूद पुलिस अपनी अक्षमता या संभवत: अपराधियों से साठगांठ के चलते निष्क्रिय बनी रही। यह सच है कि न्याय का यही तकाजा है कि पूरा सच सामने आए बिना किसी को भी दोषी ठहराना या संदेह के दायरे से मुक्त किया जाना उचित नहीं है लेकिन देखना यह है कि क्या इस मामले मेंं पूरी सच्चाई सामने आएगी और दोषियों को सजा मिल पाएगी। इसके साथ ही यह यक्ष प्रश्न भी उठता है कि क्या पुलिस अपराधों एवं अपराधियों के प्रति नरमी छोड़कर उनके जुल्मों से लोगों को निजात दिला पाएगी?



-सर्वदमन पाठक

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