Monday, October 12, 2009

अपराध है भारत की शान उडऩपरी पीटी उषा का अपमान

भोपाल में चल रही राष्टï्रीय ओपन एथलेटिक्स प्रतियोगिता में कोच के बतौर शामिल होने आई देश के इतिहास की सर्वश्रेष्ठ धाविका पी टी उषा उस समय अचानक सुखियों में आ गई जब उनके आगमन पर आयोजकों ने उनको कोई महत्व नहीं दिया और उनके स्वागत एवं ठहरने की कोई उचित व्यवस्था नहीं की और इस कारण उनकी आंखों में छलछला आए आंसुओं एव उनकी पीड़ा को प्रिंट मीडिया एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया के जरिये सारे देश ने महसूस किया। इस मुद्दे पर हुई मध्यप्रदेश सरकार एवं आयोजकों की आलोचना के बाद उन्हें आलीशान होटल में रुकवा कर तथा उनसे खेद जताकर राज्य सरकार के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने समझदारी का परिचय दिया और अपनी सरकार को फजीहत से बचाया। यह एक तरह का अपराध ही था जिसकी जितनी निंदा की जाए, कम है। यह अलग बात है कि पीटी उषा ने बाद में इस मामले को तूल न देकर अपनी अकादमी की बालाओं के परफारमेंस पर ध्यान केंद्रित किया और उनकी अकादमी की पांचों बालाओं को एथेलेटिक्स में पदक हासिल किया। इतना ही नहीं, उन्हीं की अकादमी की ही एक बाला को सर्वश्रेष्ठï एथलीट के खिताब से नवाजा गया। यदि पीटी उषा की उपलब्धियों पर गौर किया जाए तो यह स्पष्टï हो जाता है कि उनका कद देश के किसी भी एथलीट से ऊंचा है।केरल के छोटे से गांव पायोली में 27 जून 1964 को जन्मी पीटी उषा अपने बचपन में काफी बीमार रहा करती थी लेकिन इसके बावजूद उनकी अपनी लगन और प्रतिभा के बल पर प्रायमरी स्कूल के दिनों में ही धााविका के रूप में अपनी धाक जमा ली थी। 1976 में केरल सरकार ने कन्नूर में कन्याओं के लिए स्पोट्र्स डिवीजन की शुरुआत की और जो चालीस बालाएं इसमें चुनी गईं , उनमें 12 वर्षीय पीटी उषा भी शामिल थी। कोच नांबियार के मार्गदर्शन में उषा ने अपना प्रशिक्षण प्रारंभ किया । उषा की मेहनत रंग लाई और 1979 में राष्टï्रीय खेलकूद में उन्होंने व्यक्तिगत चेंपियनशिप हासिल की। 1980 में कराची में आयोजित पाकिस्तान ओपन नेशनल मीट से अंतर्राष्टï्रीय खेलकूद में पदार्पण किया। इस प्रतियोगिता में उन्हें चार स्वर्णपदक प्राप्त हुए। 1982 में सियोल में आयोजित वल्र्ड इनविटेशन जूनियर एथेलेटिक्स मीट जिसे आजकल विश्व जूनियर एथेलेटिक्स चेंपियनशिप कहा जाता है, में उषा ने हिस्सा लिया जिसमें 200 मीटर में स्वर्णपदक तथा 100 मीटर में कांस्य पदक लेकर उन्होंने अपनी प्रतिभा का एक और सबूत दिया। 1982 में भारत में हुए एशियाड में उन्हें 100 एवं 200 मीटर दौड़ में रजत पदक से संतोष करना पड़ा हालांकि कुवैत में इसी वर्ष आयोजित एशियन ट्रेक एंड फील्ड प्रतियोगिता में उन्होंने नए रिकार्ड के साथ 400 मीटर का स्वर्णपदक जीता। उन्होंने इसके बाद अपने परफोरमेंस पर अपना ध्यान केंद्रित किया और 1984 के लास एंजेल्स ओलंपिक में 400 मीटर बाधा दौड़ में वे चौथे स्थान पर रहीं। वे एक सेकेंड के सौंवे भाग से कांस्य पदक से वंचित रह गईं। हालांकि वे भारत की पहली महिला एथलीट बन गईं जो विश्व ओलंपिक की किसी दौड़ में फाइनल में पहुंची हो। उन्होंने उस समय इस प्रतियोगिता में 55.42 सेंकेंड का जो समय निकाला था जिसे आज भी कोई भारतीय महिला एथलीट छू नहीं सकी है।1985 में एशियाई ट्रेक एंड फील्ड प्रतियोगिता में भारत का परफोरमेंस उषा के इर्दगिर्द ही घूमता रहा जहां उन्होंने पांच स्वर्णपदक एवं एक कांस्य पदक हासिल कर अकेले दम पर तिरंगे की शान कायम रखी। इसके अगले वर्ष 1986 में उन्होंने सियोल एशियाड में चार स्वर्णपदक क्रमश: 200 मीटर, 400 मीटर, 4 गुणा 400 रिले एवं 400 मीटर बाधा दौड़ में हासिल कर देश का नाम ऊंचा किया लेकिन एक प्रतियोगिता में दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से 400 मीटर बाधा दौड़ में उनकी एड़ी में चोट लगने की वजह से उनका दौड़ का कैरियर काफी प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुआ। इस कारण 1988 के सियोल ओलंपिक में उसका प्रदर्शन अपनी कोई छाप नहीं छोड़ सका।यह उषा की संकल्प शक्ति का ही कमाल था कि उसने अपने शारीरिक कष्टों के बावजूद फिर वापसी की और 1989 में दिल्ली में आयोजित एशियाई ट्रेक एंड फील्ड प्रतियोगिता में चार स्वर्ण एवं दो रजत पदक जीत कर सबको आश्चर्यचकित कर दिया। वे उस समय रिटायरमेंट लेना चाहती थीं लेकिन देश के दबाव पर उन्होंने 1990 के बीजिंग एशियाई खेलों में हिस्सा लिया और पूरी तरह तैयार न होने के बावजूद तीन रजत पदक जीते।1991 में उन्होंने खेल से संन्यास ले लिया और वी विश्वनाथन से विवाह करके गृहस्थी बसा ली लेकिन 1998 में उन्होंने अपनी जबर्दस्त इच्छाशक्ति के बल पर फिर वापसी की और जापान में आयोजित एशियन ट्रेक एंड फील्ड प्रतियोगिता में 200 और 400 मीटर की दौड़ में कांस्य पदक जीत कर दिखाए। इस प्रतियोगिता में अपना ही 200 मीटर का रिकार्ड तोड़कर नया राष्टï्रीय रिकार्ड बनाया।
पीटी उषा को 1983 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया तो 1985 में उन्हें पद्मश्री सम्मान प्रदान किया गया। इसके अलावा उन्हें इंडियन ओलंपिक एसोसियेशन द्बारा स्पोट्र्स परसन आफ द सेंचुरी और स्पोटर््स वीमेन आफ द मिलेनियम का भी प्रतिष्ठïापूर्ण खिताब दिया गया है। जकार्ता एशियाड में उन्हें महानतम एथलीट नामांकित किया गया और 1985 एवं 1986 में उन्हें सर्वश्रेष्ठï एथलीट के लिए विश्व ट्राफी प्रदान की गई। दरअसल उनकी इन स्वर्णिम उपलब्धियों के कारण ही उन्हें गोल्डन गर्ल एवं उडऩपरी के रूप में जाना जाता है। आज भी वे उषा एकादमी के जरिये नवोदित खिलाडिय़ों को ट्रेनिंग दे रही हैं और ये खिलाड़ी देश एवं विदेश में अपनी इस महान प्रशिक्षक का एवं देश का नाम रोशन करेंगी इसकी पूरी उम्मीद नजर आती है।
-सर्वदमन पाठक

1 comment:

  1. बढिया पोस्ट लिखी।उषा के प्रति इस तरह का व्यवाहर सही में निदंनीय है।

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