Monday, October 19, 2009

रोशनी पर सभी का बराबर हक

दीपावली बेशक एक ऐसा पर्व है जिसके पीछे कुछ परंपराएं एवं कथाएं जुड़़ी हैं लेकिन सच तो यह है कि मन के आंगन में खुशियों के दीप जलानेेे का ही नाम दीपावली है। इसके लिए यह कतई जरूरी नहीं है कि आप किसी धर्म विशेष के अनुयायी हों या फिर एक खास विधि से इसे मनाएं। यह लक्ष्मी पूजन का पर्व है और यह प्रतीकात्मक रूप से समृद्धि की कामना को दर्शाता है। यह कहा जाता है कि लक्ष्मी जी देवों एवं दानवों के बीच किये गये समुद्र मंथन में निकली थीं और देवों को उनकी कृपा हासिल हुई थी। हम भी अपनी समृद्धि के मामले में समुद्र मंथन की प्रक्रिया से लगातार गुजरते रहते हैं और हमारी समृद्धि का उद्देश्य जितना पावन होता है, हम पर लक्ष्मी की कृपा उतनी ही ज्यादा होती है। प्रकारांतर से यह त्यौहार लक्ष्मी की उपासना का पर्व तो है ही, हमारे आंगन द्वारे, हमारे आवास के साथ ही हमारे तन मन को उजाले से जगमग करने का भी अवसर है। व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखें तो लक्ष्मी पूजन की परंपरा वाला यह देश अमेरिका जैसी विश्व की सबसे बड़ी ताकत का दीवाला निकाल देने वाली विश्वव्यापी मंदी के बावजूद आर्थिक रूप से कोई खास प्रभावित नहीं हुआ। वह अपनी बचत की आदत के कारण दीवाली का जश्र उतने ही उत्साह और निष्ठïा से मना रहा है जैसा कि पारंपरिक रूप से मनाता आया है। यह जश्र हमारे आंतरिक उल्लास का परिचायक है जो किसी भी हालत में बरकरार रहता है। इन दिनों हमारे आटोमोबाइल तथा इलेक्ट्रानिक उद्योगों सहित संपूर्ण औद्योगिक क्षेत्र में आया उछाल का माहौल इसकी कहानी खुद ही बयान करता है। हमारे बाजारों में उपभोक्ताओं की भीड़ उमड़ रही है तो हमारे उद्योगपति भी इस चुनौती का सामना करने के लिए कमर कस चुके हैं। यह औद्योगिक उफान इसी तथ्य को रेखांकित करता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था औद्योगिक देशों के आर्थिक हड़कंप से कमोवेश मुक्त रहकर अपनी मुश्किलों का निदान खोजने में सफल रही है। वैसे इस हकीकत से इंकार नहीं किया जा सकता कि यह स्थिति हाल में उभरे नव धनाढ्य वर्ग के कारण बनी है। लेकिन एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जो आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत विपन्न हुआ है। यह असंतुलन सरकार की नीतियों के कारण धीरे धीरे खतरनाक रूप धारण करता जा रहा है। इस असंतुलन के दूर करने के लिए समुचित प्रयास किया जाना वक्त का तकाजा है। सभी को खुशियों की सौगात मिले, दीपावली पर यह संकल्प लिया जाना जरूरी है। हमारे पड़ौस या हमारी बस्ती के कुछ घरों में दिया तक न जले और कुछ प्रासाद एवं गगनचुंबी अट्टïालिकाएं रोशनी से नहाते रहें, यह हमारी मानवता को भी चुनौती है। हम यदि समृद्धि के सातवें आसमान में सैर कर रहे हैं तो यह हमारा सौभाग्य और कर्म का मिला जुला लेखा जोखा हो सकता है लेकिन हमें दूसरों के जीवन में पसरे अंधेरे को भी दूर करने का प्रयास करना चाहिए, इतना ही नहीं, हम अपने मन में घर किये कलुष एवं वैमनस्य के अंधेरेे को भी निकाल बाहर करें, तभी हमारा दीपावली मनाना सार्थक हो सकेगा।
-सर्वदमन पाठक

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