Tuesday, October 13, 2009

जन सुनवाई का दर्द

इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि राज्य में पुलिस प्रशासन द्वारा आम लोगों की शिकायतों को दूर करने के लिए शुरू की गई जन सुनवाई अब जन- हताशा तथा कई प्रकरणों में जन-यातना का कारण बन गई है। जन सुनवाई में फरियादी के रूप में आने वाले लोगों में आनुपातिक दृष्टि से काफी कम फीसदी लोग इतने भाग्यशाली होंगे जिनकी समस्या का संतोषजनक निदान हुआ है और जन सुनवाई से राहत महसूस कर रहे हैं जबकि अधिकांश फरियादियों का अनुभव इसके ठीक विपरीत है। यह फोरम आजकल रसूख एवं रुतबे वाले लोगों का हथियार बन गया है। इस फोरम में लोग बड़ी उम्मीद के साथ विभिन्न स्तरों पर होने वाले अन्याय की शिकायत लेकर आते हैं। यह शिकायत आम तौर पर या तो ऐसे अपराधियों के खिलाफ होती है जो धन बल तथा बाहुबल के दम पर उनके अधिकारों का हनन करते हैं या फिर उनकी शिकायत उन पुलिस अधिकारियों व कर्मचारियों से होती है जो अन्याय करने वाले का ही साथ देते हैं। इन फरियादियों को आशा रहती है कि आला पुलिस अफसर तो कम से कम उनको सताने वाले अपराधियोंं अथवा उन्हें प्रश्रय देने वाले पुलिस कर्मियों के खिलाफ समुचित कार्रवाई कर उन्हें न्याय दिलाएंगे लेकिन उन्हें इनके दर से भी निराश लौटना पड़ रहा है। न्याय मिलना तो दूर, उन्हें दूबरे और दो आषाढ़ जैसी स्थिति से रूबरू होना पड़ रहा है। शिकायत के बाद एक ओर तो अपराधियों का गुस्सा और भड़क उठा है, वही दूसरी ओर उन्हें अपराधियों की संरक्षणदाता पुलिस का भी कोप-भाजन बनना पड़ रहा है। बड़े जोर शोर से शुरू हुई जन सुनवाई की मुहिम असफलता के किस मोड़ पर पहुंच गई है इसके गवाह स्वयं सरकार के आंकड़े हैं। इन आंकड़़़ों के अनुसार जन सुनवाई में कुल 78 हजार शिकायतें आई हैं जिनमें से कुल 10 से 12 हजार शिकायतों का ही निराकरण हो सका है। यदि यह कहा जाए कि बाकी शिकायतकर्ता इस जन सुनवाई में शिकायत करके पछता रहे हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। कई मामलों में तो शिकायतकर्ताओं के साथ यह खिलवाड़ हो रहा है कि जिन पुलिस अफसरों के खिलाफ पक्षपात अथवा लापरवाही की शिकायत है, उन्हें ही जांच का जिम्मा सौंप दिया गया है। जब आरोपी ही जांचकर्ता बन जाए तो यह कल्पना करना मुश्किल नहीं है कि जांच का परिणाम क्या होगा और शिकायतकर्ता का क्या हश्र होगा। इस जन सुनवाई का सबसे बड़ा दोष यही है कि शिकायत की जांच के आदेश दे दिये जाने के बाद उसका क्या हश्र हुआ इसकी मानीटरिंग की कोई व्यवस्था नहीं है इसलिए इसमें दिये गए तमाम आदेश धूल खा रहे हैं और बेचारा शिकायतकर्ता अपनी किस्मत को रो रहा है। दरअसल जन सुनवाई अपने आप में एक अच्छी पहल है लेकिन उसकी सबसे बड़ी कमी यही है कि इसके फालो अप एक्शन की कोई कारगर व्यवस्था नहीं है। यदि सरकार जन सुनवाई की सफलता चाहती है तो उसे यह पहल उपरोक्त दोषों से मुक्त करनी होगी वरना यह पीडि़तों के खिलाफ अपराधियों एवं पुलिस के गंठजोड़ का एक और बहाना बन कर रह जाएगी।
सर्वदमन पाठक

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