यह कोई रहस्य नहीं है कि प्रदेश का मालवा अंचल काफी समय से अपराधियों की शरणस्थली में तब्दील हो गया है। इतना ही नहीं, आतंकवाद के तार भी इस क्षेत्र से जुड़े पाए गए हैं। एटीएस एवं सीबीआई द्वारा विभिन्न आतंकवादी वारदातों के सिलसिले में यहां मारे जा रहे छापे इसका जीता जागता प्रमाण हैं। इन छापों का संबंध मडगांव बम विस्फोट से है जिसमें कथित रूप से सनातन संस्था का हाथ बताया जाता है। इसके पहले भी यहां ऐसे अन्य विस्फोटों के सिलसिले में यहां जांच पड़ताल एवं धरपकड़ की जा चुकी है जिसका वास्ता कुछ हिंदू संस्थाओं से है। इसमें चिंतनीय तथ्य यह है कि राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी से जुड़े लोगों से इस मामले में पूछताछ हुई है। मसलन गत दिवस जिन लोगों को पूछताछ के दायरे में लिया गया है, उनमें मध्यप्रदेश के एक मंत्री का करीबी राजनीतिक कार्यकर्ता भी शामिल बताया जाता है। वैसे इस क्षेत्र में हो रही आतंकवाद विरोधी कार्रवाइयों को सिर्फ सांप्रदायिक चश्मे से देखना उचित नहीं है। पूर्व में इस क्षेत्र में सिमी से जुड़े कार्यकर्ताओं को भी पकड़ा गया था जिनमें सिमी के कई शीर्ष पदाधिकारी शामिल थे। इसके भी पहले मुंबई बम कांड के सुराग इस क्षेत्र से जुड़े पाए गए थे। दरअसल यह क्षेत्र पिछले कुछ सालों में सांप्रदायिक घृणा एवं विद्वेष की राजनीति का शिकार हो गया है और क्षेत्रीय परिदृश्य इसे ही अभिव्यक्त करता है। लेकिन इसके लिए सिर्फ राजनीति ही नहीं बल्कि प्रशासन भी कम जिम्मेदार नहीं है। पिछले लगभग पौने दो दशक से यदि मालवा अंचल सांप्रदायिक विद्वेष की भट्टïी में जलता रहा है तो उसका एक बड़ा कारण यह भी है कि प्रशासन राजनीतिक आकाओं अथवा माफिया सरगनाओं के सामने शरणागत होकर अपने वास्तविक कर्तव्य को ही तिलांजलि दे बैठा और इसी वजह से उसने समाज के इन अपराधियों पर शिकंजा कसने में कोई खास रुचि नहीं दिखाई। जब भी उन सामाजिक अपराधियों पर कार्रवाई हुई तो उसके पीछे भी प्रशासनिक अफसरों की कर्तव्य परायणता नहीं, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति ही ही काम कर रही थी, भले ही इसमें वैचारिक पूर्वाग्रह का भी हाथ हो। यह सच है कि इन दिनों देश में जो आतंकवादी वारदातेें हो रही हैं, उनके पीछे पड़ौसी देश द्वारा निर्यातित आतंकवाद जिम्मेदार है और इन आतंकवादी वारदातों के कारण ही देश में सांप्रदायिक भावनाएं भड़क रही है लेकिन आतंकवाद को किसी धर्म अथवा संप्रदाय विशेष से जोड़कर नहीं देखा जा सकता। आतंकवादी सिर्फ आतंकवादी होते हैं, वे हिंदू, मुसलमान, सिख या ईसाई नहीं होते अत: सरकार को भी उससे इसी नजरिये से निपटना चाहिए। जहां तक मध्यप्रदेश की बात है, इसे इसकी फितरत के कारण शांति का टापू भी कहा जाता है। सांप्रदायिक विद्वेष एवं उसके फलस्वरूप होने वाली हिंसा से इसकी यह पहचान तो खतरे में पड़ती ही है, इसके विकास पर भी काफी बुरा असर पड़ता है अत: इस वातावरण में बदलाव वक्त का तकाजा है और इसके लिए राज्य सरकार एवं प्रशासन को ठोस कदम उठाना चाहिए ताकि प्रदेश एवं विशेष तौर पर मालवा अंचल के लिए सुकून से रह सकें एवं प्रदेश के विकास में अपनी अहम हिस्सेदारी कर सकें।
-सर्वदमन पाठक
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