Wednesday, October 28, 2009

मराठी सियासत के नए ध्वजवाहक राज

राज ठाकरे महाराष्टï्र विधानसभा चुनाव में न केवल मराठी हितों के नए ध्वजवाहक के रूप में उभरे हैं बल्कि उन्होंने इस मामले में बाल ठाकरे की विरासत को शिवसेना के हाथ से पूरी तरह हथिया लिया है। इन चुनाव के परिणाम बताते हैं कि मुंबई महानगर में राज ठाकरे की पार्टी महाराष्टï्र नवनिर्माण सेना दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है जबकि यह मराठी बहुल क्षेत्र शिवसेना का गढ़ रहा है। इतना ही नहीं, मुंबई के आसपास के क्षेत्रों में भी शिवसेना को जबर्दस्त आघात लगा है। यों तो उनकी पार्टी मनसे को कुल 13 सीटों पर ही जीत हासिल हुई है और किंग मेकर बनने का उनका सपना पूरा नहीं हो सका है लेकिन उनकी सबसे बड़ी सफलता यही है कि उनमें लोग बाल ठाकरे का अक्स देख रहे हैं। इसकी झलक पिछले लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिली थी जब उनके दल को मिले वोट- प्रतिशत के कारण भाजपा- शिवसेना गठबंधन न केवल मुंबई की सभी सीटें खो बैठा था बल्कि उसे समूचे महाराष्टï्र में भी भारी नुकसान उठाना पड़ा था। मनसे के गठन के बाद से ही राज का एक सूत्री कार्यक्रम मराठी भाषियों में घर कर बैठी अन्याय एवं उपेक्षा की भावना को राजनीतिक रूप से भुनाना था और इसके लिए उन्होंने तमाम तरह के टोटके किये। मसलन जया बच्चन के एक समारोह में हिन्दी में भाषण देने के मामले में अमिताभ बच्चन की फिल्मों के बहिष्कार का आह्वïान करने वाले राज ने अपने कदम तभी वापस खींचे जब जया और अमिताभ बच्चन ने माफी मांग ली। बिहारियों के प्रमुख पर्व छठ पूजा को ड्रामा बताकर उन्होंने भले ही बिहारियों तथा उनके तमाम नेताओं विशेषत: लालू यादव की नाराजी मोल ले ली हो लेकिन यह उनका रणनीतिक कदम ही था जिसका उद्देश्य मराठी मानुष की सहानुभूति हासिल करना था। इतना ही नहीं, वे बिहारियों के खिलाफ हिंसक आंदोलन छेडऩे तक बाज नहीं आए जिसके लिए उन्हें गिरफ्तार भी होना पड़ा।इतिहास साक्षी है कि मराठी बहुल इस राज्य में मराठियों के साथ होने वाले अन्याय के प्रतिकार के नाम पर बाल ठाकरे ने शिवसेना का गठन किया था और अपने आग्नेय तेवर के कारण वे मराठी हितों के सबसे बड़े रक्षक के रूप में उभरे थे लेकिन हाल के वर्षों में शिवसेेना ने अपना रुख एवं स्वर बदल लिया और मराठी हितों की रक्षा के स्थान पर हिंदू हितों की रक्षा की आवाज बुलंद करनी शुरू कर दी। इससे मराठियों में शिवसेना के प्रति निराशा का भाव पैदा होना स्वाभाविक था। इस बीच बाल ठाकरे की राजनीतिक विरासत को लेकर शिवसेना में नेतृत्व की जो खींचतान मची उसमें बाजी उद्धव ठाकरे के हाथ रही और इसकी प्रतिक्रियास्वरूप राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नामक अलग पार्टी का गठन किया और मराठियों की कथित उपेक्षा के खिलाफ उग्र आंदोलन छेड़ दिया जिसका परिणाम यह हुआ कि मराठी मानुष जो कभी दिलो जान से बाल ठाकरे के नेतृत्व में आस्था रखते थे, राज ठाकरे के प्रति आकर्षित हो गए। बाल ठाकरे के पुत्र और शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को अपने ही चचेरे भाई राज ठाकरे से जो चुनौती मिली, वह कतई अस्वाभाविक नहीं थी क्योंकि राज ठाकरे के पास नेतृत्व क्षमता नैसर्गिक ही थी।14 जून 1968 को जन्मे राज ठाकरे, जिनका बचपन का नाम स्वराज था, मराठी संस्कृति एवं मराठी हितों के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता के साथ ही अपने सामाजिक सरोकार के कारण शिवसेना में भी अपनी खास पहचान रखते थे। उन्होंने पूर्व में पुणे की पहाडिय़ों में शहरी गतिविधियों के खिलाफ आंदोलन चलाया था जिसका उद्देश्य इसके पर्यावरण की रक्षा करना था। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए उन्होंने 2003 में 76 लाख पेड़ लगाने का संकल्प लिया हालांकि यह लक्ष्य पूरा नहीं हो सका। 14 जून 1996 को उन्होंने शिव उद्योग सेना का गठन किया जिसका उद्देश्य मराठियों को स्वरोजगार दिलाना था। उनके साथ कई विवाद भी जुड़े रहे हैं। मसलन उन्होंने पार्टी की आर्थिक हालत को सुधारने के लिए 1996 में अंधेरी स्पोट्र्स कांप्लेक्स में माइकल जेक्सन का कंसर्ट कराया था जो काफी विवादास्पद रहा। इसी तरह किनी हत्याकांड में उनके और उनके समर्थकों पर भी आरोप लगे थे लेकिन बाद में वे उससे मुक्त हो गए। 21 जुलाई 2005 को उन्होंने शिवसेना के नेता व पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर जोशी के पुत्र उन्मेष के साथ मिलकर कोहिनूर मिल नं. 3 की 5 एकड़ भूमि का 421 करोड़ में सौदा किया जिसमें वे विवादों के दायरे में आए। बाल ठाकरे से राज का दोहरा रिश्ता है। वे बाल ठाकरे के छोटे भाई श्रीकांत ठाकरे के पुत्र हैं वहीं बाल ठाकरे की पत्नी से राज का मौसी का रिश्ता भी रहा है। अपने पिता की तरह ही वे भी कार्टूनिस्ट तथा पेंटर हैं। जब उनसे पूछा गया कि वे राजनीति में न होते तो क्या होते तो राज का उत्तर था कि वे पहले डिस्ने कार्टून नेटवर्क में काम करने के इच्छुक रहे हैं। भले ही उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका हो लेकिन उन्होंने महाराष्टï्र की राजनीति में अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए भावनात्मक विभाजन की ऐसी रेखाएं खींच दी हैं जिससे वे संभवत: प्रदेश में अपना कद बढ़ाने में सफल हो जाएं लेकिन महाराष्ट्र एवं विशेषत: मुंबई की विशिष्ट पहचान जरूर खतरे में पड़ जाएगी।
-सर्वदमन पाठक

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