सन् 2009 बीत चुका है और 2010 का आगाज हो चुका है। नया सूरज उम्मीदों का नया सवेरा लेकर आया है। पिछला साल कई मायनों में मिश्रित संभावनाओं से भरपूर रहा। एक ओर तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अपनी ओर से प्रशासन में सक्षमता, ईमानदारी एवं पारदर्शिता लाने के लिए सतत प्रयासरत रहे और इस दिशा में तेज कदम बढ़ाने के लिए उन्होंने जब जब विभिन्न विभागों की समीक्षा कर उनकी कार्यशैली में सुधार लाने की कोशिश की वहीं यह भी सच है कि कमोवेश उनका प्रयास एकाकी ही रहा। उन्हें प्रशासन की ओर सेे समुुचित सहयोग मिलना तो दूर, असहयोग का ही सामना करना पड़ा। इसका सबसे बड़ा कारण यही था कि प्रशासन की खुद की कार्यशैली दोषपूर्ण है। दरअसल यह बात जगजाहिर है कि नौकरशाही में भ्रष्टïाचार का बोलबाला है और इसे छिपाने के लिए ऐसी कार्यशैली आवरण का काम करती है। यही नौकरशाही प्रशासनिक पारदर्शिता की दिशा में मुख्यमंत्री द्वारा उठाये जाने वाले तमाम प्रयासों को नाकाम करती रहती है एवं नौकरशाही के इस कुत्सित कारोबार में अधिकांश प्रशासनिक अमले की मिलीभगत रहती है। लेकिन इसके लिए सिर्फ नौकरशाही को जिम्मेदार मानना गलत है क्योंकि राजनीतिक नेताओं के न्यस्त स्वार्थ भी भ्रष्टï नौकरशाही के लिए मददगार होते हैं। नए साल में सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि प्रशासनिक पारदर्शिता को कैसे सुनिश्चित किया जाए। प्रशासनिक पारदर्शिता सफल सरकार की सबसे बड़ी निशानी है। जन कल्याण से जुड़ी नीतियों एवं कार्यक्रमों के अमल को सुनिश्चित करने के लिए प्रशासनिक पारदर्शिता सबसे पहली शर्त है। आम तौर पर होता यह है कि जन कल्याण के कार्यक्रमों के लिए आवंटित धनराशि का बड़ा हिस्सा नौकरशाह, अफसर प्रशासनिक अमला और नेता डकार जाते हैं और कार्यशैली में पारदर्शिता न होने के कारण अधिकारी फर्जी आंकड़ों से जनता और सरकार को इसकी सफलता के बारे में भरमाने में सफल हो जाते हैं। मुख्यमंत्री खुद ऐसी पृष्ठïभूमि से आये हैं जहां दिली ईमानदारी काफी मायने रखती है और मुख्यमंत्री के रूप में भी उन्होंने अपनी इस दिली ईमानदारी को बरकरार रखा है। लोगों से वायदे करने और उन्हें निभाने में भी वे ईमानदारी के साथ ही प्रयास करते हैं लेकिन उन्हें इस तरह का तंत्र एवं कार्यशैली विकसित करनी होगी जिससे उनकी यह आकांक्षा संपूर्ण शासन- प्रशासन में प्रतिबिंबित हो सके। विडंबना यह है कि प्रशासन में इसका नितांत अभाव परिलक्षित होता है।यक्ष प्रश्र यही है कि आखिर वे कौन से उपाय हैं जो कि मुख्यमंत्री को प्रशासनिक पारदर्शिता के लिए उठाने चाहिए। इसमें सबसे पहला उपाय तो यही हो सकता है कि मुख्यमंत्री खुद ऐसे विश्वसनीय आला अफसरों की टीम बनाएं जिनकी ईमानदारी एवं कार्यनिष्ठïा असंदिग्ध हो और यह टीम प्रशासन की मानीटरिंग करे। खुद मुख्यमंत्री इस टीम से जब तब वास्तविक स्थिति की जानकारी लेते रहें और जरूरत के मुताबिक प्रशासनिक ढांचे में परिवर्तन करते रहें लेकिन सिर्फ इसी से बात नहीं बनने वाली है। इसके लिए योग्य अफसरों को प्रोत्साहित एवं पुरस्कृत करना और भ्रष्टï एवं गैरजवाबदेह अफसरों को दंडित करना भी जरूरी है ताकि प्रशासन में स्पष्टï रूप से यह संदेश जाए कि इस सरकार में सिर्फ ईमानदार अफसरों की ही पूछ परख होगी और भ्रष्टï अफसरों को उनकी करनी का फल भुगतना होगा। इस उपाय के अलावा मुख्यमंत्री को सरकार एवं नौकरशाही को जवाबदेह बनाने के लिए राजनीतिक कदम भी उठाने होंगे। कोई भी प्रशासन जब तक अपनी मनमानी नही कर सकता जब तक कि उसके पीछे राजनीतिक विरादरी का संरक्षण न हो। इसमें कोई शक नहीं है कि प्रदेश के कई प्रभावशाली राजनीतिक नेता जिनमें मंत्रियों, विधायकों एवं सांसदों के अलावा सत्ता एवं विपक्ष में बैठी राजनीतिक पार्टियों के संगठन से जुड़े नेता भी शामिल हैं, अपने फायदे के लिए प्रशासनिक अफसरों के साथ गलबहियां करते हैं और इसलिए भ्रष्टïाचार के बावजूद ये आला अफसर और उनसे जुड़ा सरकारी अमला सुरक्षित रहता है। यदि उनके ऊपर से यह राजनीतिक संरक्षण हट जाए तो स्वाभाविक रूप से उनमें यह भय उत्पन्न हो जाएगा कि या तो उन्हें अपना तौर तरीका बदलना होगा अन्यथा सरकार उन्हें बदलने में देरी नहीं लगाएगी। विशेषत: मंत्रियों पर सरकार को इस मामले में नकेल लगाना होगा। प्रदेश में कई मंत्रियों पर भ्रष्टïाचार के गंभीर आरोप हैं और ये मंत्री अपने स्वार्थ की खातिर नौकरशाही से गंठजोड़ करें तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। मुख्यमंत्री ने पिछले चुनाव के बाद मंत्रियों के रिपोर्ट कार्ड की अच्छी शुरुआत की थी लेकिन यह योजना संभवत: अमल में नहीं आ पाई। इस कारण मंत्रियों पर किसी तरह की जवाबदेही तय नहीं हो पाई। अब नए साल में इस योजना को प्रभावी ढंग से लागू करने का संकल्प मुख्यमंत्री को लेना चाहिए और इस मामले में पार्टी को उनका सहयोग करना चाहिए। सत्तारूढ़ दल के उन मंत्रियों एवं विधायकों पर कड़ी नजर रखी जानी चाहिए जो भ्रष्टïाचार के मामले में संदेह के घेरे में हैं। मुख्यमंत्री के लिए यह सबसे अच्छा विकल्प है कि न केवल वे खुद इनके आर्थिक संसाधनों पर नजर रखें बल्कि उनकी आयकर विवरणी पर भी सतर्क निगाह रखी जाए। यदि पार्टी उनकी चौकसी के लिए कोई आंतरिक व्यवस्था करे तो और भी बेहतर होगा।इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि आजकल राजनीति सेवा के बदले सुविधा का जरिया हो गई है और अन्य राजनीतिक दलों की तरह भाजपा भी इसका शिकार हो चुकी है। इसी वजह से भाजपा सरकारों के प्रभावी मंत्री भी भ्रष्टïाचार के आरोपों में घिर गए हैं। लेकिन मप्र में सबसे अच्छी बात यही है कि मुख्यमंत्री इस मामले में निष्कलंक हैं और उनमें ऐसे मंत्रियों पर अंकुश लगाने के लिए समुचित मनोबल और इच्छाशक्ति दोनों ही हैं। उम्मीद है कि मुख्यमंत्री इसका प्रयोग कर सरकार एवं प्रशासन की जवाबदेही तय करेंगे और उन्हें पारदर्शी बनाएंगे। पार्टी को भी इस विकृति को दूर करने के लिए कुछ कड़वी दवा का इस्तेमाल करना होगा और इन संदिग्ध मंत्रियों को चुनाव में न उतारने का कड़ा फैसला करना होगा ताकि जन हित की कसौटी पर भाजपा खरी उतर सके।
-सर्वदमन पाठक
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