Wednesday, January 13, 2010

देशहित के खिलाफ है हाकी का विवाद

क्या कहते हैं हाकी इंडिया के अध्यक्ष एके मट्टू
हाकी इंडिया के पास खिलाडियों को देने के लिए पैसे नहीं हैं जबकि खिलाडियों के लिए पैसा देश से बडा हो गया है। खिलाड़ी लालची हो गये हैं। उन्हें देशहित में खेलना चाहिए। यदि 48 घंटों के अंदर उन्होंने अपना बहिष्कार वापस नहीं किया तो उन्हें निलंबित भी किया जा सकता है।
क्या कहना चाहते हैं वे?
हाकी इंडिया के पास कोष की इतनी अधिक कमी है कि वह अपने खिलाडिय़ों को उनके वेतन भत्ते तक देने की स्थिति में नहीं है लेकिन खिलाडिय़ों द्वारा इस मांग को लेकर हाकी इंडिया के खिलाफ बगावती तेवर अपना लेना और विश्व कप की तैयारी के लिए लगाए गए प्रशिक्षण शिविर का बहिष्कार कर देना कतई उचित नहीं है। खिलाडिय़ों का यह रवैया खेल के हित में नहीं है। इससे खेल से जुड़ी हमारी राष्टï्रीय प्रतिष्ठïा को क्षति पहुंच रही है जो किसी भी आर्थिक लाभ-हानि से ऊपर है।
क्या सोचते हैं लोग? हाकी इंडिया के अध्यक्ष का यह बयान उनके पद की गरिमा के अनुरूप नहीं है। यदि देश की प्रतिष्ठïा के लिए जी जान लगाकर खेलने वाले हाकी खिलाड़ी अपने उन वेतन भत्तों तक के लिए मोहताज हैं जो कि उनका हक है तो इसके लिए हाकी इंडिया अपनी जवाबदेही से कैसे बच सकती है। यदि हाकी इंडिया ïूके पास खिलाडिय़ों को देने के लिए पैसा नहीं है तो इसके लिए हाकी इंडिया की बदइंतजामी और अक्षमता को ही दोष दिया जा सकता है, खिलाडिय़ों को नहीं। यह आश्चर्यजनक है कि एक ओर तो खिलाड़ी अपनी ओर से अपने खर्च पर ही विश्व कप में खेलने की पेशकश कर रहे हैं और दूसरी ओर खेल इंडिया धमकी की भाषा का इस्तेमाल करते हुए उन्हें 48 घंटों के अंदर बहिष्कार वापस लेने, वरना निलंबन झेलने की चेतावनी दे रही है। क्रिकेट को धर्म तथा क्रिकेट खिलाडिय़ों को भगवान मानने वाले देश में अन्य खेलों विशेषत: हाकी के प्रति हमारे कारपोरेट जगत एवं सरकारों के सौतेले रवैये की यह पराकाष्ठïा ही है कि इसके खिलाडिय़ों के वेतन भत्ते के लिए संघ के पास पैसे नहीं है। हाकी के पराभव के लिए हमारा यह रवैया भी काफी हद तक जिम्मेदार है। यदि हम एक बार फिर हाकी के स्वर्णयुग की ओर लौटना चाहते हैं तो हमें हाकी के प्रति हमारे रुख पर यथाशीघ्र आत्मचिंतन करना चाहिए और इसके पुनरुत्थान के लिए समुचित संसाधन जुटाने के लिए संकल्पबद्ध होना चाहिए। इस दिशा में शिवराज सिंह चौहान की राष्टï्रीय हाकी को गोद लेने की पेशकश अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू है और उम्मीद की जानी चाहिए कि अन्य संस्थाएं भी ऐसे ही प्रस्ताव लेकर आगे आएंगी।
सर्वदमन पाठक

1 comment:

  1. आपका अख़बार पत्रकारों को तनख़्वाह ना दे, स्टेशनरी और टेलीफ़ोन तक का खर्च पत्रकार अपनी जेब से करें. और अख़बार फंड की कमी का रोना रोए. पत्रकार पैसे ना मिलने पर तंग आकर हड़ताल कर दें, प्रेस बंद करा दें. तो आप क्या यह कहकर उनकी आलोचना करेंगे की ये पत्रकार पैसे के लालची हैं, इनके लिए पत्रकारिता और अख़बार से अधिक कीमती पैसा है.

    ये खिलाड़ी भी इंसान हैं, इन्हे भी मकान का किराया देना होता है, परिवार पालना होता है, कपड़े लत्ते खरीदने होते हैं, पेट्रोल और टिकिट के खर्चे होते हैं, राशन खरीदना होता है, समाज मे स्टेटस पाना होता है, इनसे भी उम्मीद की जाती है की ये अपना खर्च खुद उठाएँ. पर यहाँ तो अपनी किट और खुराक पर भी ये अपनी जेब से ही खर्च करते हैं.

    एक अनुभवी पत्रकार (जो खुद को ह्यूमनीस्ट कहता है) उसकी अगर यही सोच है, तो फिर ईश्वर ही मलिक है.

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