यह साल गुजरते गुजरते भी ऐसी घटना का साक्षी बन गया जो निर्लज्जता की पराकाष्ठïा ही थी। देश के बहुचर्चित राजनीतिक नेता तथा आंध्र प्रदेश के राज्यपाल नारायण दत्त तिवारी राज्य के ही एक स्थानीय चैनल द्वारा किये गए स्टिंग आपरेशन में कुछ नाजनीनों के साथ निर्वस्त्र अवस्था में पकड़े गए। चैनल पर इसकी क्लिपिंग कुछ देर तक दिखाई जाती रही और बदनामी के छींटे पर पड़ते रहे। कुछ समय बाद भले ही अदालती आदेश के बाद उक्त चैनल ने इस क्लिपिंग का प्रसारण बंद कर दिया लेकिन इससे राज्यपाल पद की प्रतिष्ठïा जो आघात लगा है उसकी भरपाई होना काफी मुश्किल है। वैसे यह पहला अवसर नहीं है जब राज्यपाल के पद पर उंगलियां उठी हैं। राज्य सरकार से टकराव को लेकर तो कई बार राज्यपाल विवादों में रहे हैं। कुछ मामलों में चारित्रिक कारणों को लेकर भी राज्यपाल संदेह के दायरे में रहे हैं लेकिन नारायण दत्त तिवारी का मामला सबसे शर्मनाक है। इस घटना की गंभीरता इस हकीकत को देखते हुए और बढ़ जाती है कि श्री तिवारी काफी बुलंद राजनीतिक शख्सियत के रूप में जाने जाते रहे हैं। वे चार बार उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं और एक बार तो वे प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचते पहुंचते रह गए थे। उन्होंने दावा किया है कि इस क्लिपिंग में कोई सच्चाई नहीं है और ये उनको फंसाने के लिए रचा गया एक फिल्मी नाटक था। उनका कहना है कि वे इसे अदालत में चुनौती देने का मन बना रहे हंै लेकिन अभी तक उन्होंने यह कदम नहीं उठाया है। उनके काफी करीबी व्यक्ति का इस मामले में हाथ बताया जाता है जो उनकी नस नस से वाकिफ है। वैसे उन पर चारित्रिक आरोप कोई पहली बार नहीं लगे हैं, बल्कि पहले भी उनके चरित्र को लेकर उंगलियां उठती रही हैं।यही कारण है कांग्रेस पार्टी ने भी उनका बचाव करने में कोई रुचि नहीं दिखाई और उन्हें आनन फानन में यह संकेत दे दिया कि राजभवन से विदा लेने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है। राजभवन से रुखसत होने के बाद भी उनकी निंदा और चटखारों का दौर जारी है। इस विशेष मामले की सच्चाई को तो तकनीकी तरीके से ही परखा जा सकता है लेकिन आम तौर पर राज्यपालों से जुड़ा विवाद कयासों पर आधारित होता है, उसका सबसे बड़ा कारण यही है कि राजभवन की गतिविधियों में पारदर्शिता नहीं होती। बहरहाल इस तरह की घटनाओं के मद्देनजर यह वक्त का तकाजा ही है कि राजभवन की गतिविधियों को पारदर्शी बनाया जाए। आजकल राजभवन जिस तरह से पूर्वाग्रहपूर्ण राजनीति में लिप्त हो जाते हैं या उसके शिकार हो जाते हैं, उसे देखते हुए तो यह निहायत जरूरी हो गया है।
-सर्वदमन पाठक
sahi baat hai janab.narayan narayan
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