भोपाल मेमोरियल अस्पताल एवं शोध संस्थान के भीतर भोपाल विश्वविद्यालय की शोध छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार इस प्रतिष्ठिïत संस्था के माथे पर एक बदनुमा दाग ही है। इस बलात्कार में संस्था के एक डाक्टर की भी संलिप्तता सामने आई है जो इस घटना का सबसे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण पहलू है। वैसे तो यह संस्थान गैसपीडि़तों को उच्चस्तरीय इलाज उपलब्ध कराने के लिए बनाया गया था और इसकी देखरेख सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की अध्यक्षता में गठित न्यास द्वारा की जाती है लेकिन पिछले लंबे समय से यह अस्पताल विवादों के घेरे में रहा है। इस अस्पताल में डाक्टरों का उच्चस्तरीय स्टाफ तो अब कुछ ही विभागों में बचा है जबकि अन्य विभागों में लोगों को अपेक्षानुरूप इलाज न मिलने की शिकायतें आम होती जा रही हैं। अब नि:शुल्क चिकित्सा का गैसपीडितों का अधिकार भी शिथिल हो गया है क्योंकि इसमें प्रायवेट मरीजों का इलाज भी होने लगा है। यहां की सुरक्षा व्यवस्था अवश्य ही इतनी सख्त बना दी गई थी कि गैसपीडि़त मरीजों को बहुधा परेशानी हो जाती थी लेकिन इसके बावजूद इस मामले में संस्थान को समझौता गवारा नहीं था। इस घटना के बाद दोषरहित सुरक्षा व्यवस्था का यह भरम भी टूट गया है। जो सुरक्षाकर्मी मरीजों एवं उनके परिजनों से प्रवेश के लिए तमाम तरह की पूछताछ करते हैं, उन्हीं सुरक्षाकर्मियों ने उक्त छात्रा एवं उसके साथ आने वाले पुरुष को कैसे कैंपस में प्रवेश करने दिया, यह बात समझ से परे है। सवाल यह भी है कि इस महिला को शराब पिलाकर उसके साथ सामूहिक दुष्कृत्य किया गया फिर भी इन सुरक्षा कर्मियों को भनक क्यों नहीं लगी। यह घटना जिस तरह से हुई है, उससे यह संदेह होना स्वाभाविक है कि यह कहीं इस उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्र में चल रहे किसी सेक्स रैकेट का हिस्सा तो नहीं है। यदि ऐसा है तो फिर वहां न्यास की कार्यक्षमता पर यह एक प्रश्र चिन्ह ही है। क्या न्यास के कर्ताधर्ता बता सकते हैं कि यहां ऐसे डाक्टर की नियुक्ति कैसे हुई जो आगे चलकर संस्था के लिए बदनामी का सबब बन सकता था। क्या नियुक्ति के समय अभ्यर्थियों का समुचित चरित्र सत्यापन सुनिश्चित किया जाता है। दरअसल नियुक्तियों की जिम्मेदारी तो न्यास की ही है फिर वे इसकी जवाबदेही से कैसे बच सकते हैं। इस बात में कितनी सच्चाई है, यह तो अस्पताल प्रबंधन ही बता सकता है लेकिन यह शिकायत आम है कि इस अस्पताल में आजकल असामाजिक तत्वों का खासा दखल हो गया है और ये असामाजिक तत्व इस प्रतिष्ठिïत अस्पताल के वातावरण को दूषित कर रहे हैं। यह घटना भी ऐसे ही वातावरण की परिणति हो सकती है। यदि अस्पताल प्रबंधन इसकी प्रतिष्ठïा की पुनस्र्थापना के प्रति तनिक भी चिंतित है तो उसे तत्काल इस घटना की तह में जाने हेतु समुचित जांच बैठानी चाहिए और इसके लिए दोषी तमाम लोगों पर कार्रवाई करनी चाहिए। अस्पताल को ऐसे वातावरण से मुक्त करने के लिए कारगर उपाय किये जाने चाहिए जो इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जिम्मेदार हैं। साथ ही उन तमाम कर्मचारियों एवं डाक्टरों की सेवाएं समाप्त की जानी चाहिए जिनके अतीत पर संदेह की जरा भी छाया है।
- सर्वदमन पाठक
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