Wednesday, January 6, 2010

जनहित के प्रति प्रतिबद्धता शिवराज सरकार की सबसे बड़ी चुनौती

नए साल के आगाज के साथ ही शिवराज सरकार जन विश्वास की कसौटी पर खरे उतरने के लिए कुछ ज्यादा ही सचेत हो गई है। सत्ता के चाल, चरित्र और चेहरे को और साफ सुथरी छवि प्रदान करने की कोशिशों में अचानक आई तेजी इस हकीकत को ही बयां करती है। इस सिलसिले को शुरू करते हुए मुख्यमंत्री ने साल के शुरुआती दिनों में ही आनन फानन में विभिन्न विभागों के कार्यकलापों की समीक्षा की और तमाम आला अफसरों को यह संदेश देने की कोशिश की कि जनता के हित के खिलाफ कोई भी प्रशासनिक ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी। अब पार्टी की शीर्ष पंक्ति के नेता वेंकैया नायडू इसी सिलसिले में मंत्रियों की क्लास लेने की तैयारी में हैं। यह सही है कि ईमानदार शासन एवं प्रशासन राज्य की बेहतरी के लिए जरूरी है और इस दृष्टिï से यह कवायद स्वागत योग्य है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि मुख्यमंत्री अथवा नायडू के ये प्रयास तभी परवान चढ़ सकते हैं जब मंत्रियों एवं आला अफसरों में भी इन प्रयासों का सार्थक असर हो। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि मुख्यमंत्री की ईमानदार छवि के कारण ही भाजपा राज्य में दुबारा सत्ता में लौटी है और इसी विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए उनमें जनहित की नीतियों एवं कार्यक्रमों को अमलीजामा पहनाने के लिए समुचित बदलाव लाने का संकल्प साफ झलकता है। उक्त मुहिम इसी की परिचायक है लेकिन सवाल यही है कि क्या उनके पास ऐसे मंत्रियों एवं अफसरों की टीम मौजूद है जिनमें भी ऐसी ही ईमानदारी और संकल्पबद्धता हो। फिलहाल तो नौकरशाही की जो तस्वीर नजर आती है, वह प्रशासनिक दृष्टिï से ज्यादा उत्साहजनक नहीं है। अफसरों एवं प्रशासनिक अमले में फैला भ्रष्टïाचार ऐसा रोग है जो राज्य को सेहत को बेहतर बनाने तथा इसे खुशहाली का टानिक देने की सरकार की तमाम कोशिशों को निगल रहा है और इसके बावजूद सरकारी आंकड़ेबाजी से सरकार को भ्रमित किया जा रहा है।अफसरों की समीक्षा बैठक भर से काम चलने वाला नहीं है बल्कि जब तक ईमानदार अफसरों को पुरस्कृत करने तथा बेईमान अफसरों को दंडित करने का अभियान नहीं चलेगा तब तक राज्य की प्रगति में बेईमान अफसरशाही रोड़ा बनी रहेगी।प्रशासन से सरकार के कार्यक्रमों के क्रियान्वयन को सुनिश्चित कराने के लिए मंत्रियों में प्रशासनिक क्षमता तथा ईमानदारी का होना पहली शर्त है। यदि वल्लभ भवन में मंत्रियों की उपस्थिति पर नजर डाली जाए तो यह बात साफ हो जाती है कि अधिकांश मंत्री तो इस प्रशासनिक मुख्यालय में तभी आते हैं जब उनके किसी परिचित, रिश्तेदार या राजनीतिक साथी, सहयोगी की फाइलें निपटानी होती हैं। फिर वे आला अफसरों पर नियंत्रण कैसे करेंगे। इतना ही नहीं, कई बार तो मंत्रियों एवं आला अफसरों में भ्रष्टïाचार के मामले मेें मिलीभगत होती है। कौन नहीं जानता कि कई मंत्रियों पर पिछले वर्षों में भ्रष्टïाचार के गंभीर आरोप लग चुके हैं और उनमें से अधिकांश आज मंत्रिमंडल में हैं। क्या सरकार एवं सत्तारूढ़ पार्टी ऐसे मंत्रियों पर नकेल कसने के लिए तैयार है ताकि जनता के प्रति जवाबदेह ईमानदार शासन -प्रशासन का मार्ग प्रशस्त हो सके।
-सर्वदमन पाठक

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