Wednesday, January 20, 2010

धरने पर मंत्री

किसी मंत्री द्वारा अपनी ही सरकार की नाकामी के खिलाफ आवाज उठाने के साहस का प्रदर्शन एक असाधारण घटना है लेकिन पारस जैन ने यह साहस कर दिखाया है। उज्जैन की एक नजदीकी सड़क की दुर्दशा से कुपित पारस जैन ने धरने पर बैठकर सनसनी फैला दी। उन्हें यह गुस्सा इसलिए आया क्योंकि एक जैन मुनि को खराब सड़क के कारण तकलीफ उठानी पड़ी। मंत्री की इस नाराजी से घबराये संबंधित विभागीय अधिकारियों ने फौरन ही इस सड़क को दुरुस्त करने के लिए कवायद शुरू कर दी है और संभव है जल्द ही यह सड़क पूरी तरह दुरुस्त हो जाए और मंत्री का गुस्सा शांत हो जाए। यह उनकी धार्मिक निष्ठïा ही थी जिसके कारण एक जैन मुनि के कष्टïों पर उनके मन को ठेस लगी और वे धरने पर बैठने के लिए भावनात्मक रूप से विवश हो गए। हमारा देश धर्म प्रधान देश है और यह घटना इस बात का प्रमाण है कि हमारी र्धािर्मक आस्थाएं हमारे लिए सर्वोपरि हैं। उक्त मंत्री भी इस मामले में अपवाद नहीं हैं। अत: मंत्री के उक्त कदम को नाटक की संज्ञा देना कतई उचित नहीं है। लेकिन जहां तक सड़कों का सवाल है, सड़कें तो पूरे प्रदेश की ही खस्ताहाल हैं और आम आदमी को उन पर प्रतिदिन गुजरते हुए कितनी ही तकलीफों का सामना करना पड़ता है। भोपाल की सड़कें इस दुर्दशा का जीता जागता प्रमाण हैं। राजधानी के मोहल्ले तो आजकल ऐसे लगते हैं मानो वे राजधानी नहीं बल्कि दूर दराज इलाके में स्थित किसी देहात का हिस्सा हों। सड़कों पर होने वाली जानलेवा दुर्घटनाओं के लिए सड़कों की दुर्दशा भी काफी हद तक जिम्मेदार है। इतना ही नहीं, टूटी फूटी सड़कें प्रदेश के विकास को भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती हैं। कालांतर में इससे लोगों में खुशहाली लाने के राज्य सरकार के वायदे भी प्रभावित होते हैं। यह कोई रहस्य नहीं है कि सड़कों की बदहाली के लिए सरकार ही जवाबदेह है जिसका कि उक्त मंत्री भी एक हिस्सा हैं। सवाल यह है कि उक्त मंत्री क्या कभी सड़कों के कारण आम जनता को होने वाले कष्टïों से भी इतने व्यथित हुए हैं। दलील दी जा सकती है कि मंत्रिमंडल सामूहिक जिम्मेदारी के तहत कार्य करता है और किसी मंत्री द्वारा धरने जैसा कदम उठाकर अपनी ही सरकार को धर्मसंकट में डालना इस सामूहिक जिम्मेदारी की अवहेलना है। लेकिन इसके साथ ही जनता के कष्टïों का निवारण भी तो सरकार की सामूहिक जिम्मेदारी है। क्या कभी तमाम मंत्री आम जनता कोबदहाल सड़कों से होने वाले कष्टïों से निजात दिलाने के लिए ऐसी ही संकल्पबद्धता दिखाते हैं जैसी कि पारस जैन ने एक जैन मुनि के कष्टïों को महसूस करते हुए दिखाई है। यह भी तो आखिर जन-धर्म ही है फिर ये जनता के रहनुमा उनकी तकलीफों की अनदेखी कैसे कर सकते हैं। होना तो यह चाहिए कि सुविधाजनक सड़कों के निर्माण द्वारा प्रदेश की परिवहन एवं यातायात व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए राज्य सरकार अभियान चलाए ताकि प्रदेश के औद्योगीकरण का मार्ग प्रशस्त हो सके।
-सर्वदमन पाठक

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